प्राचीन भारत का ऐतिहासिक भूगोल | Prachin Bharat ka Etihasik Bhugol

Prachin Bharat ka Etihasik Bhugol by बिमल चरण लाहा - Bimal Charan Laha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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2 प्राचीन भारत का ऐतिहासिक भूगोल का अनुसरण करके तैयार की गयी है। तथापि यह अवश्य स्वीकार किया जाना चाहिए कि ये विवरण यथार्थत. निर्दोष है। जैसा कि कनिघम ने बतलाया है, कल्पना-तत्त्व नियमत. बाहरी देशो तक ही सीमित हैं और शुद्ध भारतीय स्थान- वृत्तो के प्रति उनके सकेत सामान्यतया सयत है । विष्णु पुराण मे दी गयी देशो की सूची अतीव संक्षिप्त है। बिना किसी क्रम के ही महाभारत में अपेक्षाकृत एक विस्तृत सूची प्राप्त होती है। पद्म पुराण की स्थिति भी यही है। फिर भी, मारत के देशो एव जातियों की एक विशादु तालिका मांण्डेय, स्कन्द, ब्रह्माण्ड एव वायु पुराणों मे दी गयी है। माकंण्डेय पुराण में जम्बुद्वीप तथा मेरु के चतुर्दिक्‌ स्थित पर्वेतो, वनो एव झीलों का वर्णन दिया गया है। उसमे भारत के नौ खण्डों, सप्तपवंत-मेखला और बाइस पृथक्‌ पहाड़ियों का वर्णन किया गया है। इसमें गगा नदी के प्रवाह-मार्ग तथा भारत की प्रसिद्ध नदियों का वर्णन, उनके स्रोतभूत पर्वत-मालाओं के आधार पर वर्गी- करण करते हुये किया गया है। पुराणों से प्राप्त अधिकाश देशो एवं जातियों के नाम माकंण्डेय पुराण के नद्यादि-वर्णना खण्ड से उपलब्ध नामों से बहुत कुछ साम्य रखते है, किन्तु इसमें ऐसे नामों की भी एक बहुत बडी सख्या है, जो पूर्णतः नवीन एवं मौलिक हैूँ। माकंण्डेय पुराण (अध्याय, 57), जिसमे वस्तुत. दूसरे प्रमुख पुराणों मे वर्णित वास्तविक भोगोलिक सूचनाएँ सनिहित है, के कूमंविभाग नामक खण्ड मे भारत के देशों एव जातियों की एक सूची है, जिसके चयन का आधार, देश (मारत) की कच्छप के रूप मे की गयी परिकल्पना है जो विष्णु के ऊपर जल पर अवस्थित है और पूर्वाभिमुख है । यह चयन पू्वकालीन ज्योतिष- ग्रथो तथा पराशर एवं वराहमिह्रि की कृतियों पर आघुत है। यह अध्याय स्थान-वर्णन के दृष्टिकोण से अमूल्य है। मागवत पुराण में भी कुछ भौगोलिक मुचनाएँ सनिहित है। इस प्रकार हम यह देखते है कि प्राचीन भारत के भौगोलिक अध्ययन के लिए पुराण वास्तव में अत्यत महत्वपूर्ण है। असख्य माहात्म्यों का भौगोलिक दृष्टिकोण से सतर्क॑तापुवेक अध्ययन करना आवश्यक है। विशाल माहात्म्य-साहित्य मे--जिसके अतर्गत्‌ पुराणों एव सहिताओ के अश समिलित हैं--विविध तीर्थों की भौगोलिक विशेषताओं के वर्णन प्राप्त होते है। महत्त्वपूर्ण स्थानों की स्थिति-निणय के साध्ष्यों की दृष्टि से उनका बहुत अधिक भौगोलिक महत्त्व है। तीर्थों के पौराणिक इतिहास का * यह श्रवचारणा भारत की भौगोलिक विद्ेषताओं संबंधी हमारे वर्तमान ज्ञान से पूर्णतः संगत है।




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