सरदार वल्लभभाई पटेल भाग 2 | Sardar Vallabhbhai Patel (vol-ii)

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Sardar Vallabhbhai Patel (vol-ii) by सरदार बल्लभभाई पटेल - Sardar Ballabhbhai Patel

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रास गांवमें सरदारकी शिरफ्तारी श्ड “मेने कहा, वे तो हाओीकोर्टेमें जाना चाहते हैं।' तो चोे, 'मुझे यहां आनन्द है और में सजा पूरी किये बिना नहीं निकलूंगा। हां, मजिस्ट्रेट मूखें था। मुखे कानूनका वुछ भी खयाछ नहीं था। अुसने किसीको कचहरीमें नहीं जाने दिया। कानूनकी धारामें ढूंढनेमें नूसे डेढ़ पहर लगा और मुझे सजा देनेवाछा आठ पंवितियोंका फैसला छिखनेमें डेढ़ घंटा लगा ।'* “ फिर मेने भुनकी जरूरतकी चीजोंकी सूची बनाना शुरू की । मिस पर सुपरिन्टेन्डेन्टने कहा, ' अस्तरेकी मिजाजत नहीं है। आपको हजामत बनवानेंकी सुविधा दी जायगी।' “यह तो में जानता हूं कि यहां कैसी हजामत होती है।' कहते हुमे सरदार हंस दिये । “ निसखिभे जेलरने, जिसे सुपरिन्टेन्डेन्टसे नियमोंका कुछ अधिक ज्ञान माठूम होता था, कहा, 'साहव, जिस कंदीको तो सुस्तरा दिया जा सकता है।' * सुपरिन्टेन्डेस्ट वोले, ' तो ठीक । परंतु जव मापकों चाहिये तव देंगे । चह रहेगा हमारे ही पास ।” “जिस पर सरदारने कहा, ' आप मुझे अंक मुस्तरा दे दें तो कसा अच्छा हो ! दूसरे कंदियोंकी हजामत वनामूं और चार पैसे पंदा कर लूं।* “जिस वार तो चित्रवत्‌ वैठे हमें सुपरिन्टेन्डेन्ट और जेलर भी खिलखिलाकर हंस पड़े। परंतु मुन्हें चुरन्त ही फिर नियमोंका खयाल भा गया । क्षण भरके लिखे मनुष्य वननेवाले फिर यंत्र वन गये और वोले, * जिन्होंने सावुनकी मांग की है परन्तु सुगंघित सावुन न भेजिये । सुगंघित सावुनकी जिजाजत नहीं है।' “हुम रवाना हो रहे थे कि सरदार वोले, ' तीन महीने तो में आराम करूंगा । वाहर निकलूंगा तव चातावरणमें जितनी गर्मी आ गभी होगी कि में ठोक मौके पर ही निकलूंगा। वड़ा अच्छा हुआ! * अन्तमें जैसे कोऔ खास वात कहनेवाले हों मुस तरह बोले, ' मेरे आनन्दका तो कोबी पार नहीं। परन्तु अंक वात्तका दुम्ख है।' “यह वाक्य अंग्रेजीमें बोले । जेलर और सुपरिन्टेस्डेव्ट चौंके। सुननेके लिखे अधीर हुआ। परन्तु सरदारने कहा, ' बह कहने जैसी नहीं है।” यह कहकर मुन्होंने मुल्टा हमारा कुततुहरू वढ़ा दिया। “क्षण भर चाद वोले, ' दुःखकी वात यह है कि यहां सभी हिन्दुस्तानी अफसर हैं। सिपाहियों और वार्डरोंसि ठगा कर सुपरिन्टे-




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