वेदांत कुञ्ज | Vedant Kungi

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Vedant Kungi by स्वामी श्रीरामाश्रम जी - Swami shree Ramashram Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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करती है । पुनः अचिन्त्य शक्ति से सष्टि इस शीषेक में यह समभाया गया हैं कि ब्रह्म निगंण एवं निष्क्रिय हैं झतएव वह स्वरूप से कुछ नहों करता अपितु उसमें इच्छा सृष्टि आदि की प्रतीति अचिन्त्य शक्ति ही के द्वारा हो रही है। और इदवर अन्यायी क्यों ? इस श्रकरण में यह दिखलाया गया हैं कि एक ही वर अपनी माया के द्वारा जीव कर्ता कर्म तथा भोक्ता आदि के रूप में स्वयं हुआ है अतएव उस पर जीवों से कर्म कराना तथा उन्हें ऊँच-नीच यो नियों में जन्म देकर सुख- दुश्ख का प्रदान करना इत्यादि विषमता का दोपारोपण चन ही नहीं सकता । तथा इत्ति-वन्दना में तो बृत्ति को जगनियन्ता परमेश्चर का रूप समककर बढ़े सुचारु ढंग से उसकी चन्दना की गयी है । तदनन्तर बत्ति क्या है ? इसमें च्रत्ति का स्वरूप तथा उसके कार्यों का भली भाँति वर्शन शिया गया है । फिर छत्ति का इंज्वर-जीव चनाना इस प्रकरण में यह बतलाय गया है कि एक ही अद्वितीय चैतन्य परमात्मा माया-दत्ति तथा झविद्या-इत्ति के कारण से ही क्रमशः ईश्वर और जीवों के रूप में ग्रतीत हो रहा है । उसके बाद आाध्यात्मिक प्रदनोचर ं _




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