अथर्व वेद [खण्ड - 2] | Atharva Veda [Khand - 2]
श्रेणी : धार्मिक / Religious, हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.52 MB
कुल पष्ठ :
667
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)या (१ अध्याय ह है श्पर
भव और रुद्र मिश्रवत है तथा अपना महान पराक्रम
प्रवट करते हुए विचरण करते हैं । वे जिस दिशा में भी हो,
हम चन्हें नमस्फार करते हैं ॥ (४ ॥।
है रद्र ! हमारे सम।ने आते हुए, हम से लोटरर जाते
हुए, वेठे हुए झथवा साढ़े हुए तुम्हें हम नमस्कार करते
हैं॥ १४॥।
हे रुद्र ! हम तुम्हें, सष्या प्रात: काल, राधि और
दिन में नमस्कार करते हैं ! भव गौद शर्वें दोनो देवों को
हमारा नमस्कार प्राप्त हो ॥ १६ ॥।
सहस्राक्ष महान मेघावी, सहस्त्रो वाण चलाने वाले
श्रौय संसार व्यापी रुद्र के निकट हम न जायें । १७ 11
हम उन रुद्र को अन्य स्तोताओ से पूर्व भ्रपने रक्षक के
रूप में जान कर प्रणाम करते है जिन्होंने केशी नामक देत्य
के रथ को फेंक दिया था तथा जिनसे स सार डरता है ॥ ८ ॥।
हे देव ! हम ससारी जीवो पर कोघित न हो बोथ
न हम पर अपने वाणो से प्रहार ही करो । अपने दिव्य अस्त्र
को हमसे अन्यल्र छोड़ो । हम तुम्हे नमन करते है 11 १६ ॥
हेरुद्र ! हम पर क्रोध न करो औयद न हमारे प्रति
इ्विसात्मक भाव अपनाओ । हम पर कृपा वरो तथा अपना
शस्त्र हमसे अलग रखो । हम झापके क्रोघित भाव से अलग
ही रहे ॥ र० 0
भा नो गोपु पुरुपेपु मा गूघो नो मजाविपु 1
अन्पलोप्र थि बतय पिंयारूणा प्रजा जहि ॥ २१ ॥
यरप तदमा काका हेतरेकमरवस्पेव बपण: क्रन्द एति 1
मभिर्ुवं नि्ण पते नमो अस्त्वस्में ॥ रर थे
योन्तरिक्षे तिप्लिति विष्रमितोधपज्वनः प्रमूणन् देवपीयूनु ।
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