अथर्व वेद [खण्ड - 2] | Atharva Veda [Khand - 2]

Atharva Veda [Khand - 2] by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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या (१ अध्याय ह है श्पर भव और रुद्र मिश्रवत है तथा अपना महान पराक्रम प्रवट करते हुए विचरण करते हैं । वे जिस दिशा में भी हो, हम चन्हें नमस्फार करते हैं ॥ (४ ॥। है रद्र ! हमारे सम।ने आते हुए, हम से लोटरर जाते हुए, वेठे हुए झथवा साढ़े हुए तुम्हें हम नमस्कार करते हैं॥ १४॥। हे रुद्र ! हम तुम्हें, सष्या प्रात: काल, राधि और दिन में नमस्कार करते हैं ! भव गौद शर्वें दोनो देवों को हमारा नमस्कार प्राप्त हो ॥ १६ ॥। सहस्राक्ष महान मेघावी, सहस्त्रो वाण चलाने वाले श्रौय संसार व्यापी रुद्र के निकट हम न जायें । १७ 11 हम उन रुद्र को अन्य स्तोताओ से पूर्व भ्रपने रक्षक के रूप में जान कर प्रणाम करते है जिन्होंने केशी नामक देत्य के रथ को फेंक दिया था तथा जिनसे स सार डरता है ॥ ८ ॥। हे देव ! हम ससारी जीवो पर कोघित न हो बोथ न हम पर अपने वाणो से प्रहार ही करो । अपने दिव्य अस्त्र को हमसे अन्यल्र छोड़ो । हम तुम्हे नमन करते है 11 १६ ॥ हेरुद्र ! हम पर क्रोध न करो औयद न हमारे प्रति इ्विसात्मक भाव अपनाओ । हम पर कृपा वरो तथा अपना शस्त्र हमसे अलग रखो । हम झापके क्रोघित भाव से अलग ही रहे ॥ र० 0 भा नो गोपु पुरुपेपु मा गूघो नो मजाविपु 1 अन्पलोप्र थि बतय पिंयारूणा प्रजा जहि ॥ २१ ॥ यरप तदमा काका हेतरेकमरवस्पेव बपण: क्रन्द एति 1 मभिर्ुवं नि्ण पते नमो अस्त्वस्में ॥ रर थे योन्तरिक्षे तिप्लिति विष्रमितोधपज्वनः प्रमूणन्‌ देवपीयूनु ।




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