मुक्तिबोध | Muktibodh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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15 जीवन प्रभागचंद्र शर्मा से हुआ था जोकि बाद में साप्ताहिक कर्मवीर (खंडवा) के सहकारी संपादक हुए और फिर वहीं से आगामी कल नामक अपना स्वतंत्र साप्ताहिक निकाला । नए काव्यांदोलनों की तरफ झुकाव के साथ-साथ मुक्तिबोध में एक चीज और दिखलाई पड़ने लगी थी | वह थी उनका प्रेमचंद से अत्यधिक प्रभावित होना | ऊपर जिक्र किया जा चुका है कि उनकी माँ के प्रेमचंद अत्यंत प्रिय लेखक थे। उन्दीं की प्रेरणा से मुक्तिबोध ने प्रेमचंद को ठीक से जाना और उन्हें अपनी आत्मा के सर्वाधिक निकट पाया । यहाँ उनके प्रसिद्ध लेख मेरी माँ ने मुझे प्रेमचंद का भक्त बनाया का स्मरण आवश्यक है जिसमें वे कहते हैं मेरी माँ जब प्रेमचंद की कृति पढ़ती तो उसकी आँखों में बार-बार आँसू छलछलाते-से मालूम होते | और तब-उन दिनों मैं साहित्य का एक जड़मति विद्यार्थी मात्र मैट्रिक का एक छोकरा था-प्रेमचन्द की कहानियों का दर्दभरा मर्म माँ मुझे बताने बैठती | प्रेमचंद के पात्रों को देख तदनुसारी-तदनुरूप चरित्र माँ हमारे पहचानवालों में से खोज-खोजकर निकालती | इतना मुझे मालूम है कि माँ ने प्रेमचंद का नमक का दारोगा पिताजी में खोजकर निकाला था | इससे यह तो स्पष्ट है ही कि प्रेमचंद के माध्यम से मुक्तिबोध की माँ ने उन्हें श्रेष्ठ मानववादी साहित्य की ओर प्रवृत्त किया यह भी स्पष्ट है कि उनके चरित्र की नैतिक दृढ़ता की बुनियाद उनके पिता थे जिनका परिचय ऊपर दिया जा चुका है | और पिता ही क्यों अपने जीवन और साहित्य में उन्हें उनकी माँ ने भी विद्रोही बनाया था | उक्त लेख में ही अपनी मॉँ को बहुत ही ऊँचा दर्जा देते हुए वे लिखते हैं मैं अपनी भावना में प्रेमचंद को माँ से अलग नहीं कर सकता । सेरी माँ सामाजिक उत्पीड़न में परंपरावादी थी किंतु धन और वैभवजन्य संस्कृति के आधार पर ऊँच-नीच के भेद का तिरस्कार करती थी। वह स्वयं उत्पीड़ित थी। अंत में मुक्तिबोध के एक और कथन को उन्हीं के शब्दों में देख लेना जरूरी है क्योंकि वह किशोरावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक के उनके जीवन को हमारी आँखों के सामने उपस्थित कर देता है मेरी प्यारी श्रद्धास्पद माँ यह कभी न जान सकी कि वह किशोर हृदय में किस भीषण क्रांति का बीज बो रही है कि वह भावात्मक क्रांति अपने पुत्र को किस उचित-अनुचित मार्ग पर ले जाएगी कि वह किस प्रकार अवसरवादी दुनिया के गणित से पुत्र को वंचित रखकर उसके परिस्थिति-सामंजस्य को असंभव बना देगी | इंदौर के होल्कर कालेज में बी. ए. की पढ़ाई करते हुए मुक्तिबोध का परिचय प्रभाकर माचवे से हुआ जोकि उस समय क्रिश्चियन कालेज में बी. ए. के अंतिम वर्ष के छात्र थे और छात्रावास में रहते थे । माध्यम बने वीरेंद्रकुमार जैन |




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