गोपाल कृष्ण गोखले | Gopal Krishna Gokhale

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विकास पी चेल्प पर ब्राह्मण ही थे। विशेष रुप स रत्तागिरि जि ता महाराष्ट्र भर भारत व उत्तयनीप नेताम्ा वा जंमस्थल रहा है । गायल वा पिता टप्णरोव में वाहहापुर रियासत के एव छाटे से सामन्त। रजंवाड वायर से साररी कर ली थी। बट वहा एवं वलेक का स्प से नियुतत हाए। याद से पुलिस वा सय इसपफेकटर वन गए । उस समय रजवाड़ा में निधुवत बमचारिया का बहुत कस वेतन मिलता था। उप्यराव की पत्नी कातलुत ये रहने वाने आर परिवार वी थी जतकें छ बच्च थे. जिनमस से दो लड़के थ। वत पुन को सास गोसिद था श्रार छाटे का गाया । यहें स्पप्ट है कि यगापाल टृप्ण गावल न इमनिटारी तथा सिस्वाथ कायभावना के सतगुण अपनी वशपरम्परा से ही प्राप मिए थे। उन्होंने श्रपन इस उत्तराधियार वी रक्षा ही नहीं वी अपन जीवन तथा वार्यों से उस समृद्ध भी क्या । गापान थे जीवन वा प्रारम्भिक वर्षों से उह घर पर श्रथवा स्कूग में दी गड शिला के सम्बंध में अधि जानकारी सुलभ नहीं है। उनकी मा पढ़ी पिय्री नहीं थी. उन टिना यट सम्भव भी ने था। परतु अन्य श्ना निरक्षर ज्ञानवान स्विया की. मात एढह वुद्धिमत्ता श्ौर परम्परागत जॉन वी भरपुर निधि प्राप्त थी। रामायण श्रौर महाभारत वी कथाएं कटस्थ थी । सन्त महात्माप्रा के भक्तिपूव भजन भी इसी भाति ननवे श्रयन वन चुव थ। पुण्यशीलता भर्क्ति झार लगने से ऑ्रतिध्रात व गीत गायन व घर में पड संवर श्रोर काफी रात बीतन तक गाए जात थे झौर व घर मे पवित्नता श्रौर प्रेम की वा कर देते थे। इन प्रभावी का छाप श्रागे चल कर गाखले म स्पष्ट रुप स देखी जा सकती थी । जिस मकान से गापारू ने जम पिया जिस स्कूल मे उन्होने पहल- पहन शिपा पाल जिन अध्यापकों न उठ पढ़ाया और जो स्कूल मे उनक साथी झौर सहपाठी रहे उन सबके बार म हम कुछ पता नहीं हैं। खेद वी यात है कि गाखले वे जीवन वे एस भाग को परिचय हम कार नहीं दे पाया । कागल से रहने वाले उस बालक के पिपय से हम केयत यह बित्ति है कि वहा उसने श्रपनी आरम्भिक शिक्षा पुरी की । गोयल व जीवन-चरिघ्नां मे वार-वार दाहराया जाने वाला एक प्रसंग एसा अवश्य हू जिसका उल्लेख यहा क्या जा सकता है। एक बार उनके अध्यापक ने बालक का घर पर हल करने के लिए ग्रणित के




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