बिहारी | Bihari

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Bihari by डॉ ओम्प्रकाश - Dr. Om Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बिहारी का जीवन-वृत्त । १४५ घर-घर तुरकिनि हिंदुनी देति असीस सराहि। पतिनु राखि चादर चुरी ते राखी जयसाहि ॥७१९॥ . . ये तीन दोहे बनाकर और उनको हुकुम पाइ० ७१३ इत्यादि दोहे क-मुवेगप रखकर कदाचितू उक्त दरवार ही मे अपनी सतसई ग्रथरूप से महाराज की भेट गए कर दी । इस घटना के कुछ पूर्व ही विहारी की स्त्री का देहान्त हो गया था जिससे उनका चित्त ससार से कुछ विरकक्‍त-सा हो रहा था । एक तो वे आरम्भ ही से वृन्दावन के भक्त थे और दूसरे उस समय की चित्त-वृत्ति ने उनका हृदय वृन्दावन की ओर और भी आकर्षित किया । अत वे महाराज से विदा होकर आमेर से चले आए । किसी-किसी का यह भी कथन है कि बिहारी आमेर से विदा होने पर जोघपुर दूँदी इत्यादि राज्यो मे भी गए थे और बहुत सभव है कि उन्होने वर्षाशन के उगाहने के निमित्त ऐसा किया हो । पर जो हो यह निष्चित प्रतीत होता है कि वे आमेर छोड कर चाहे सीवे चाहे और राज्यों मे घूमते-फिरते अपने गुरु श्री नरहरिदास के पास वृन्दावन गए और अपना शेप जीवन वही जातिपुवेक भगवदूभजन मे व्यतीत करके सवत्‌ १७२१ मे परमधाम को सिधारे | जिस प्रकार विहारी की सतसई के पुर्वे की कोई रचना नहीं मिलती उसी प्रकार उसके परचात्‌ की भी कोई कृति देखने मे नहीं आती । ज्ञात होता है कि वृन्दावन निवास करने पर विहारी सवंधा भगवद्भजन तथा महात्माओ के सत्सग मे लगे रहते थे । कविता का व्यमन उन्होने सबेथा छोडदिया था । हमने स्वय वृन्दावन जाकर श्री मौनीदासजी की टट्टी इत्यादि स्थानो मे खोज की पर उनकी कविता का कही कुछ पता नहीं मिला । इधर-उधर से कुछ बातें एकत्रित करके उन पर अनुमान को अवल वित्त कर यह जीवनी सुश्द्खल रूप में लिखने का यत्न किया गया है। इसमे अनेक त्रुटियो तथा भगुद्धियो की सभावना है ।




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