पश्चिम में आर्य संस्कृति और साम्राज्य | Pashim Me Arya Sanskriti Aur Samrajya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.99 MB
कुल पष्ठ :
317
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)टफ़ध5 को झंग्रेस साइरस कहते हैं । परन्तु सही शब्द कर है परन्तु संस्कृत
साहित्य में फारस देश को 'कारुष' लिखा गया है । श्रतएव इस पुस्तक में भी शुरु
के स्थान पर कुरुष शब्द का प्रयोग किया गया है । मारगेत, पर्सी झादि इतिहासज्ञों
ने परशु देश के एक बंझष को जिसे ध्रंग्रेज़ी में 2८08670£065 लिखा है उसे
इखबानस लिखा है । परन्तु यदि 'ह' को 'स' मात लिया जाए तो समस्या सह अ
हींमेंहलहो जाती है, क्योकि ये लोग भाये थे भोर हख मानिस शब्द को
उन्होंने संस्कृत माषा का लिखा है । श्रतएव सही शब्द सक्षमान है जिवे इस
पुस्तक में लिखा गया है ।
फारसी देश के पारसियों के धर्म-ग्रंथ 'जिदावरता' ने नामों की समस्या
काफी सुलभा दी है । क्योकि इस पुस्तक में सस्कृत माधा का फारसी रूप या बह
फारसीकरण दृष्टिगोचर होता है जिसमे संस्कृत से नई माषा फारमी धीरे-धीरे
बनती जा रही थी । झतः इससे काफी श्रश तक इतिहास लिखने में सहायता
मिलती है ।
प्राचीन फारसी धर्म पर मी भ्रायं धर्म की स्पष्ट छाप थी । अभी तक तो
केवल यही सुना जाता था फि शिव देवता संभवत. श्रनायों के थे । परन्तु इन
देशों के इतिहास-घ्रघ्ययन से पता चला कि यह उक्ति सर्वथा निराधार नहीं है ।
बेबीलोन के झासपास से एक सीन मिली है जो श्राजकल ब्रिटिश म्युजियम में
रखी है। यह सील ईसा पुर्वे की मानी जाती है । इसमें श्रकेले शिव ही नहीं---
जलहूरी, नंदी, त्रिशूल, सूर्य भ्ौर चन्द्र मी बने हैं तथा राजा को नगे बदन धोती
पहने हुए तथा मुकुट घारण किए हुए बतलाया गया है 1
भव थोडा-सा ध्यान दस्यु, श्रसुर बोर श्रनायं शाज्दो पर भी दिया जाना
चाहिए । संस्कृत साहित्य इन दब्दों से म रा पड़ा है । असल में ये सब दाब्द पडिचिमी
लोगों के प्रयुक्त किये गए है । भ्रसुर लोगो का प्रसुर स्थान बेंबीलोन का क्षेत्र
था जिसे युनानियो ने &65पा लिखा है । यही बाद में प्रसी रिया श्रौर फिर सी रिया हो
गया । इसी प्रकार भ्रनायें स्थान वर्तमान खुरासान के नीचे का माग तथा दस्यु
स्थान दह्म, था । यदि फारसी के 'ह' को “स' में बदल दे तो यह दस्यु शब्द हो
जाता है जो कि युनानियों ने ईरान के पूर्थी क्षेत्र को 10416 लिखा है ।
संम्कृत साहित्य में हिरण्यकशिपु, प्रद्लाद प्रौर बलि को अवुर माना है । यह
झाइचयं की बात है कि ईरान के प्राचीन इतिहास में कई नाम नरहरि क्षब्द के
पाये जाते हैं । इसी प्रकार भारतीय नाम जिनके पीछे अ्रश्ब दाब्द लगा रहता है
ईरान में बहुतायत से पाये जाते है ।
इस इतिहास के पढ़ने से विद्वान् दांका कर सकते हैं कि यह इतिहास तो
ईसन का है। परन्तु भ्ध्ययन से यह घारणा निर्मल हो जाएगी क्योंकि थैह
इतिहास वास्तव में भ्राये जाति की उस शाखा को है जो मारत से श्रलग होकर
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