दिव्योपदेश | Divyopadesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बान्ति के पथ पर वान्ति समाहित चित्त की अ्रवस्था का नाम है। शान्ति परिपूर्ण ब्रह्म है । ्रयं श्रात्मा शान्त -- यह झात्मा निरन्तर छान्त है । जिसमें जनरव नहीं कोलाहल नहीं-- वह कान्ति है । यह चान्ति ही तुम्हारा श्रन्तर्वासी आ्रात्मा है । शान्ति ही तुम्हारा वास्तविक नाम है । शान्ति से विपुल विचार-शक्ति मिलती है । शान्ति से श्रात्मा अनुभूतिगम्य होता है । वान्ति के साम्राज्य में प्रविष्ट हो कर श्रात्मा परमात्मा बन जाता है । अत इसमें प्रवेश ले कर श्रपने स्वरूप को परमात्म-स्वरूप में परिणत कर लो । श्री स्वामी शिवातस्द [ पन्द्रहद |




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