वीर अर्जुन | Viir Arjun

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Viir Arjun  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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- ालपाल कपड़े खोख कर येठा दी था कि बाहर से किसी ने पुकारा-- राज- चाका राजपाल थी माँ ने पूचा-- कोन दे? गै घाव बागग्द चले आशो । राजपाल थहीं से पुरार उठा-- क्या माँ आानस्दु को भूक गई । उसने कड़ा । पी तो वही गटखट वही बेटा आनन्द बहुत दिनों बाद आने । ममस्ते कहने के बाद उसने कदा-- हाँ माठा नी भइया राज्पाल वहां थे दी कब । राजपाक ने उठकर उसका स्वागत किया उसने झाज आनंद में देखो बडी बाख सुखूम आत्मीयता । प्तुम्दारा तो पता दी नहीं चद्नतर भाई भानस्द | क्या मकान बदक खिया दे हो साई राजपाल जीवन भी परिषतेसशील दै । फिर मिट्टी के घर से केला प्रेम [ डसकी बालो में मम्मीरता थी और परिवर्तन । राजपाल को याद जामला बह दिन अब ब्षों बाद राजपाल और जावन्द जिस स्ट्रीट पर मिले थे । आनंद लागों दुखी था । उसमें अब किला सुशषम चंचसता नहीं थी । उसकी बाली में अजुभव को सारगर्मिसी यू लि भी । लो क्या अब अध्ययन समाप्त कर दिया है? सही अप्यपन तो बढ रहा दे । बहुत दियोसे इढठ रद था कि कही तुम मिखो भर फिर स्मरण करें उन बालको- कं को । आब तो सब न माना । मैं कल ही पढ़ा । आमस्द ने बिचव बद्ख दिया था।... ... ग्स्यामत भागन्दू स्वायव मैं अपना सोमास्थ समकता हूं कि तुम्दारे शुशग दो गपे। तुम्दारा ठो कहीं एसा ही यहीं । मांगे बीच में दो झाकर कहा-- गया आमगस्दू चाल तो तुमे विया भोजन किये थाने न दू सी । चसखों सोलन सैवार दे । झ्ावल्द ना नहीं कर सका । दोयों जिन ब्यों बाद मिल कर एक साथ सोजअब कर रो थे। गबेरा जागम्द मनि द५िचय विका- बे हुए कहा-- राबपादा को तो सम- साओ । क्यों नहीं यह विवाद करने को लैबार होता । मेरे कहने को लो यह बातों में दी उड़ा देता है । तुम्दारी तो मानेगा ही । राजपास्र ने आानस्द को देखा और झागन्द ने रालपात्र को । दोनों के सेत्र पक कल मिंक कर पुनः अलग हो गये । शजपाल मुस्करा रहा था बीच में दी उसने कहा-- क्यों आामत्द भाज की इस दोद के युम में बिदाद को क्या आदवर्वकता दे। उसको बाली में विनोद था । अानन्द के सामने मानों एक समस्या भा खड़ी हुई । विवाद ओर सीखा का जीवन + अविवादित नव्युवती का जीवन । उसका मन णुक बार पुनः रत को घटनाओं को दुदरा रहा था + पमाता जी सब महवा तो बियोद करते दें विवाद बिदांइ बढ दर्द करे ये । झामन्द मानों थिर्बास के साथ कह रहा था 4 मच्छा तो माँ तुम किसके घाय मेरा बियाद कर रही हो? भर अआनम्द का किवाइ व करोयी । पद देख बह फोटो कल की डाक से आया है। वगच्छो बात दे ठो भापकों मान्य है ब राजदा्न ने मां की शोर देखते इुर कया । गदों नहीं बेटा 4 उसका पिता बढ़ा मरीव दे और खद़को खप्की कया रत्न है दीरा । पढ़ी लिखी । माँ के दुभ्ली इदय में पक इसकी पीढ़ा थी राजपाल के पिता को खत्यु के पश्चात बसे केवल पुक हो जिंत। थरे राजपाल्य का पालोप्रदल यदद बात नहीं कि अपड़ हो उसने थी मध्यमा तक झष्ययन किया था । पर आज उस्स्को ममता झपना चेव लो चुकी थी। वह राजपाक को औीवन का उपयोग करते देखना चाहती थी केवज था सारी दाशंमिक भौर हुविद्दान दी नहीं और राजपादक का उद शव था त्याग । बाठ समाप्त हो गई राजपास को सजुमति के साथ । मां के शामन्द का पाराबार से था ३ जद जद जद दिन के थार बज चुडे थे 4 जपवल्द दे कहा-- जच्छा राजपाल अब ले बलू । झाज लो भराचाय दवे के बढ़ा उनकी पुत्री शेक्षिनी के अन्म दिपल के उपलक् में निर्मत्रख दे । अरे बहाँ तो सुकते भी जाना दे । अच्छा अब रहते कहां हो ? राजपाल थे फिर ईपछुले प्रश्न को दुद्रावर । क्या बताऊँ राबपाक घर नहीं केवज भान्म है । तुमसा एक मित्र दे जिसके घर सिक्षक लेन पोस्ट बोक्स मं १र३। बह महीं चाहता था कि वह किसी को बतल्ायं कि बह कहां रहता है पर राजपाल राजपाक्ष उसका अतरंग मित्र है । मासो बह उसका कोई निकट आध्मीय दो। बह उससे केसे शुपाता । हो क्या पिता थी ने कोई ब्यवस्था नहीं की 7 राजपाल् ने पूछा । गुम तो लानत ही हो भाई पिता थी व्यवस्था करने में झसमर्थ हैं राजपास्र ने समस्द लिया आनम्द अली इस लियय में वातलिप करना यहीं चाहता । किम्तु उसकी इस अवस्था ने सजपाक को और अधिक सोचने को बाध्य किया उसने कहा -- माई आनम्दु मैं तो केवअ इसी लिये सब कु पढ़ रदा हू कि में भोर तुमदो बी हैं । क्या में भी तुम्हारी कुछ सदायठा कर सकता हू? अच्छा जआाथो यहां तो मिखोगे ? अवश्य । अानस्ट चला सया और राजपाद बे सी जाने की तथ्पारी कर दी । जद ज््द जद [111 गये दो बच्चों में राघवेन्द ने घर का बहुत कुछ उसरदायित्व अपने ऊपर ले दिया था । बेचारे आचाबं को भव पुक अल का भी विशञाम दुखेंभ था । बहुत प्रबत्नों के पश्चात्‌ के अपने परिश्चम में सफल हो गये थे । अपने सदयोगियों को हांमेंदां मिला कर थायायं ने अपने आप को योग्य सिख कर दिधा था । आास्य की बात भाचावं को मिनग्ट्री मिली अतेर आचाय दबे मंत्री-र्मडख के सदस्य हो गये -- सासन की शार्जिक ढोर के सा्य-चिघाता 7 किर थिशाम विज्ञाम कहाँ? मो में बेटे-बेटे आचार्य शरेशाण ये । ब्रोठ की मत्क्वी मुस्काब की मंतस बेखा से खेकर संध्य की कील रेखा के आीच आजा रामजुन खगाने के झति- रिक्ति सर कुछ मम कर पलले थे और राजपाल्न के प्रयत्नों से खोच्त उच्छ - सख कम्यूलिस्ट युवकों के अ्दे से छुटठी दै। फिर मोटर कहीं किसी मंत्री के धर किसी सभा में कहीं इत्रपान में और कभी समब मिछा तो अपनी पुरानी सह- योनिनी जेबुननिसा के बंगले कर । कस दिन सिकल कर अस्त दो लाठ। का और रात्रि के पश्चात्‌ पुनः प्रभाव । आयायें का जीवन बहुत व्यस्त दो गया था 4 राघवेस्द को पा कर आचाले प्रसक थे | उन्हें कोई पुन नहीं था इससे थे बहुत दु्ी थे पर प्रभू कीडरेग शेतशानी दो उनके लिए खड़का थी राजयेस्ज् उनका सदाधक । उनका दिसाव-किताब जब राघवेन्द रखता दे + रानयेन्द्[झाशित महडीं अब स्वामी दे म्तेकर नहीं माई है । दद श्द कै चाय दुबे की कोठी के लामने की सारी ही प्रिंस स्ट्रीट मोटर भौर तांगे से संचासय भरी हुईं दे । कोठी पर ठिरंग३ पताका में शुज्न झाकाश को रंग-दिर से साथों में खा रही हैं भर एवन-कलक




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