हिंदी उर्दू और हिन्दुस्तानी | Hindi Urdu Aour Hindustani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22.38 MB
कुल पष्ठ :
180
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)३ हिन्दी उदूं और हिन्दुस्तानी क ्ौर खलाना ढाँ कना ढाँपना थाँवना थामना चाकू चाक लोन नोने दुगना दूना कभी कधी य यू और या वो वह और बुद्द उसको और उसकू मिंद और मेंह एसी और ऐसी -मैं में और मीं में और में ऋद्दीं ओर कहूँ तुम ोर तम हिलना और हलना रलना और रुलना घिसना और घसना लड़कई लड़काई लड़कापन लड़कपन पुर और पूर मुद्दान और मूहान यहाँ ओर यहाँ प्यारा और प्यारा मुझा और मए इत्यादि बहुत से शब्द हैं जिनमें उच्यारण- भेद या प्रान्तीयता का रूप-भेदू ही कगड़े का सबब है । इन्शाउअल्ला ने इन शब्दों के उद्ादरण देकर उरू या गेर उदू का फ्ेसला किया है। इनमें से जिस शब्द का जो उद्चारण देहलो में प्रचलित है ( या था 9) उसे सही या अहले- ज़बान की उूं माना है बाक़ी को रालत उदू या टकसाल बाहर की बोली कहा दे । सादित्यिक वा परिष्कृत भाषा के लिये स्थान विशेष की भाषा को आदर्श मानना पड़ता है जिस प्रकार अंगरेज़ी भाषा के लिये पालंमेंट की भाषा आदर्श मानी जाती है । इसी तरदद उदू-कविता की भाषा का अद्श देहलो की ज़बान मानी गई । पर भाषा का यह आदश निंयन्त्रण बोलचाल की भाषा के लिये ठीक और सुनासि्र नहीं माना जा सकता। सय्यद् इन्शा ने तो सारी देहली की भाषा को भो फ्रतीद उरूं या उदू-ए-मुझल्ला नहीं माना । उ-ए-मुझल्ला या लाल क्िते के अ/सवास को बस्ती--अकुछ गिने चुने मुडल्लों की फिर उनमें भी कुछ खास लोगों की जो देहली के क़दीम बाशिन्दे शरीफ्र श्र नजीब -- ( जिनके माँ बाप दोनों देहली के पुराने बाशिन्दे ) हैं उन्हीं की भाषा को उप माना है । देहली में जो बादर के लोग इधर-उधर से आकर बस गये हैं उनकी भाषा को भ्रष्ट या टकसाल बाहर की ज़बान कटा है। बाहर वालों की बोलो पर खूब फब्तियाँ उड़ाई हैं सख्त कड़ी चुटकियाँ ली हैं । देहली के गिने-चुने लोगों की भाषा को ही यदि उदू कहा जाय तब तो यह ठीक है--झऔर इन्शा ने इसी दृष्टि से इस पर विचार किया है-पर उदू से यदि देश भाषा या हिन्दुस्तानी मुराद लो जाय जैसा कि वह है तो इस संकुचित दृष्टि को छोड़ना पड़ेगा क्योंकि भारत भर के सब उदूं बोलने और लिखने वाले दिल्लो के रोड़ नहीं न
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