केन उपनिषद | Ken Upanishhad

Book Image : केन उपनिषद  - Ken Upanishhad

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

Add Infomation AboutShripad Damodar Satwalekar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
श्द् केन उपनिषद्‌ । विचार उत्तम रीतिसे उक्त मंत्रमें है इस लिये यह मंत्र संपूण जगत्‌का मागेद्शंक हो सकता है । गुरुशिष्य उच्चनीच दिक्षित अशिक्षित अधिकारी अनधिकारी आदि प्रकारके द्विविघ जन हुआ करते हैं। उन दोनोंका भा होना चाहिये और किसीकाभी बुरा नहीं होना चाहिये । यह लोक-संग्रह का तत्व इस मंत्रमें है। इस लिये यह मंत्र सामुदायिक प्रदास्त कर्म का उपदेश कर रद्दा है । अब दूसरे शांतिमंत्रमें वेयक्तिक उन्नतिका भाव देखिये-- (१२) द्वितीय शांतिमंत्रका विचार । 5 आप्यायन्तु ममांगानि वाक्प्राणश्वश्ुः श्रोत्र- मथो बलमिंद्रियाणि च सवाणि सवे ब्रह्मोपनिषदं माहं त्रह्म निराकुया मा मा ब्रह्म निराकरोद अनिरा करणमस्तु अनिराकरण मे 5स्तु तदात्मनि निरते य उपनिषत्सु धर्मास्ते मयि सन्तु ते मयि सन्तु ॥ 5 द्यांतिः । द्यांतिः । शांतिः ॥ (५) मेरे सब अंग हृष्टपुष्ट हों मेरी वाणी प्राण चक्षु श्रोत्र आदि इद्ियों बलवान हों (२) यह सब ब्रह्मका ज्ञान है (३) में ज्ञानका बिनादा नहीं करूंगा और मेरा नाश ज्ञान न करे (४) कीसीका विनाश न हो (५) जो उपनिषदों में घारण पोषणके नियम कहे हैं ने मेरे अंदर स्थिर रहें । दरीरका बल इंद्रियोंकी शक्ति ओर आत्माका सामध्य बढ़ाने का उप- देश इसमें हे । उत्तम ज्ञानका आदर ओर अज्ञानका निराकरण करनेकी सूचना इसमें देखने योग्य है । मनुष्यमें जो स्थूल और सूक्ष्म शक्तियां हैं उनका सम-विकास करनेकी उत्तम कठ्पना इसमें अत्यंत स्पष्ट दाबदोंट्वारा व्यक्त की गई है । अस्तु यह द्वितीय मंत्र वेयक्तिक उम्नतिका ध्येय पाठकोंके सन्मुख रखता है। मनुष्यकी व्यक्तिष्दाः उन्नति करनेकी सूचना इस मंत्रद्वारा बताई गड है और संघदाः उन्नति का श्रेष्ठ ध्येय प्रथस मंत्रद्धारा बताया गया है ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now