पदमाला | Padmala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पदमाला | (५४) यह कराल कलिकालजालम धरम थे द्विज आनि परे । तुम्हरी ओर निहारि कपानिधि व्याकुल विलपत हू स- गरे ॥ ९ ॥ धमहेत॒ नरदेह धारि हरि जग जग प्रति सब कष्ट हरे ॥ ७ ॥ अति विकराल काल जग छायो अ्रगढ़ो प्र कर चक्र घरे ॥ ८ ॥। अष्टपदी १० द्रवहु दयानिधि यदुराइं ॥ दुलुजदुलन खलमलन कलुष कलदहन धमहित चितलाइई ॥ ध्र० ॥ कलिमलजल- वघिकलोल अमंगल प्रबलबढ़ी बहु दुखदाइ ॥ १ ॥ झुचि शरतिसेतु सर्सकित कंपित व्यथित संतगण अकुलाइ ॥ सुरकुलमंडन अखुरनिखंडन पाखंडिन दंडनराइ ॥ ३ ॥ तव कीरति जगतारक लरणी भवसरितातट लरखाई ॥ ४ ॥ लोभलुरामद्अंध मंद जन नहीं नीतपथ दिखराइ ॥ ९ ॥ दारिद दलित द्शादेशनकी धराधान्य नहि उपजाइे ॥ ६ ॥ बिन जीवन जिमसि मीन दीन तस हीन दशा जन समुदाइं ॥। ॥9॥ हैं अनंत भगवंत करो बलबंत कूपा जग खुखदाड ॥८॥ अष्टपदी ११. सखुनिये दीनदयाल धमेत्रतिपाल धमहित तनु धारी ॥। ॥ १ ॥ संकट विकट कठोर घोर चहुँ ओर परो अब गिर- थारी ॥ २ ॥ धर्म दिवाकर बदन दुरायों छाइ दश दिशि अधियारी ॥ २३ ॥ श्रीगोपाल गोपकुलमंडन धर्म थठु कहे उद्धारी ॥ ४ ॥ अज्ञान कंदटकबन घन बाढ़ो सत पथ दुरे मोध्षकारी ॥ ९ ॥ अनाचारआचारदविचारन करे न कोऊ मतिधारी ॥ ६ ॥ अति पुराण इतिहास बिनासे छुप्त भये आश्रम चारी ॥७॥ काल मान बलवंत विलोकत रहें संतजन दियहारी ॥ ८ 0




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