श्री भागवत दर्शन खंड 80 | Shri Bhagwat Darshan Khand - 80
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.52 MB
कुल पष्ठ :
169
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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तब श्रेष्ठि पुत्र ने कहा-'“महाराज से निवेदन करो में उनके
निमित्त सिन्घु देश से एक रत्न लाया हूँ।” र
द्वारपाल ने राजा से निवेदन किया, तब राजा ने थे ष्दि पुत्र
वो बुलवाया । राजा ने पूछा--“बहो, भाई श्रच के तो तुम बहुत
दिनो में श्राये। सिन्घु देश से हमारे लिये बौन-सा रत्न लाये
हो गा
सादर झभिवादन करके श्रेष्ठ पुत्र ने व हा--' झ्रन्नदाता । मैं
सिन्घु देश से महाराज के ही निमित्त सब शुभ लणण सम्परन
सर्वोत्तम भ्रश्च लाया हूँ । वह इस लोक का ही नहीं तीनो लोको
का रतन है, ऐसा घोड़ा मिलना बडा ही दुर्लभ है । मैं बहुत भारी
मुल्य देकर बडी कठिनाई से उसे लाया हूँ ।”
राजा तो गुणग्राही थे । इस समाचार को सुनकर वे परम
प्रसल्न हुए। उन्होंने कहा-- अच्छा, उस श्रश्च को मेरे समीप
लाभो ।”*
'जो झाजश्ञा' कहकर श्रेष्ठिपुद बाहर गया श्र घोड़े सहित
पुन: महाराज के सम्मुख समुपस्थित हुधा । श्रम्ध को देखकर
शजा परम विस्मित हुए, वह उच्चे श्रवा के सदश प्रतीत होता
था, उसके सौंदियं के सम्बन्ध में तो कहना ही क्या था, मानो वह
सुदरता का झालय ही था, समस्त शुभ लक्षणों का सागर ही
था । राजा ने शालिवाहन शाख्र के ममज्ञ दिद्वानो को बुलाकर
घोडे को दिखाया । सभो ने उसकी भुरि-भूरि प्रशसा की, उस घोड़े
की सुदरता को देखकर शालिवाहन शास्तियो द्वारा उसके शुभ
लक्षणों की प्रशसा सुनकर महाराज को झपार झानद हुआ । वे,
श्ानन्द में मग्न होकर व कयपुत्र की प्रशसा करने लगे झौर उसने,
जितना भी सूल्य माँगा उतना तो उसे दिया ही । पारितोपक के
सूप से घोर मी झतिरिक्त घन उसे दिया ।
क
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