निराला | Nirala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बैसवाड़ेका जीवन रे कुछ उपन्यास नाटक आदि नष्ट भी हो गये । द्विवेदीजीसे परिचय हुश्ना शरीर उन्होंने बाबू शिवप्रसाद शुप्को एक पत्र लिखा कि ज्ञान मण्डलमें इन्हें कुछ कार्य देदें । प्रयत्न विफल ही रहा । श्रक्तूबर सन्‌ १६२१ में प्रताप प्रेससे बातचीत चली । मालिक लोग वीस-पच्चीस रपये देनेको राजी थे । उधर रासकष्ण मिशनको एक सम्पादककी आवश्यकता थी । उस जगहक। विज्ञापन भी निकला । द्विवेदीजीने स्वामी माधवानन्दजीकों पत्र लिखा आर कानपुरमें मुलाकात होने पर कमसे कम पचास रुपये सासिक वेतनपर इन्हे रख लेनेको कहा । दिसम्बर सन्‌ २१ में द्विवेदीजीने लिखा जान पड़ता है स्वामीजी ने बहाना कर दिया है। पसंद किसी श्र ही को किया होगा । खैर उनकी इच्छा । इघर बनारस जानेमें भी श्रापने देर कर डाली । - आगे चलकर निरालाजीने रामकृष्ण मिशनमें काम किया श्र सालभर तक समन्वय का सम्पादन किया । इसी समय राम चरित मानसपर उन्होंने वे निबन्ध लिखे जिनमें सस सोपान झ्रादिकी नई व्याख्या करके तुलसीदासकों रद्दस्यवादी सिद्ध किया है । 1... सन्‌ १६२३ में बाबू महादेव प्रसाद सेठने मतवाला निकाला । साल भर तक निरालाजी यहाँ रहे । मतवाला की तीसरी संख्यामें पृष्ठ १७ पर एक कविता छपी है गये रूप पहचान और इसीके साथ मतवाला के समंपर गढ़ा हुआ निराला नाम भी प्रकाशित . हुआ है । झठारहवें अंकमें जहीकी_कली छपी है जिसके साथ पदली वार कविका पूरा नाम पण्डित सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला? प्रकाशित्त हुभ्रा है। उनके जीवनमें बहुत दिनोंके बाद ऐसा सुखद वर्ष झाया था । महादेव वावू बड़ी खातिर करते थे। वहुत दिनोके वाद अवरुद्ध साहित्यिक प्रतिमाकों प्रकाशमें झानेका झवसर मिला था । शामकों भाँग छानना दिन-भर सुरती फ़ाँकना थियेटर देखना




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