नंददास भाग - 1 | Nandadas Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
252
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about उमाशंकर शुक्ल - Umashankar Shukl
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका [ ३१
७/१६ तया ३०३/१३४ की दो पोधियाँ डा० भवानीशंकर याज्ञिक से प्राप्त
ह£ है। सभा की प्रति का प्रथम तथा अंतिम छुंद इस प्रकार हँ--
एक समे मन मित्र सोहि श्रज्ञा यह दीनी।
्ाही ते मति उकति जोगलीला तव कौनी ॥
ज्विव सनकादिक सारदा नारद सेस महेंशा।
देह बुधिबर ऊंदे उर अक्षर ऊंकति विश्ञेंस ॥|
कपट रूप करि किते भांति कहु भेष बनावे।
गोपी शोप गुपाल की नित ष्याल पिठादे॥
रूप सिरोसणि राधिका रसिक शिरोसनि स्पांसम ।
निपट वसों ऊंर में सदां करि शंकेत सघास ॥ स्यास स्थासा सहित ॥।
यानिक जी की दोनो प्रतियी में निपट वसी ऊर' के स्थान पर “बसत
उ्दे उर ' पाठ मिलता हू । मगलाचरण के छुंद में शिव सनकादिक की
स्तुति चित्य है। जैसा कि पहले कहा जा चुका हैँ नंददास आदि वललभ
संप्रदाय के भक्तों की रचनाओं में इन्हें गौण स्थान दिया गया हैं। दिहु
वुधिवर ऊंदे उर' में उर्दे की शिलिप्टता के कारण दो प्रकार से अर्थ किया
जा सकता है--[१) उदय के हृदय मे श्रेष्ठ बुद्धि दो (२) हृदय में श्रेप्ठ
वृद्धि का उदय दो (करो)। अंतिम छुंद के 'वसत उदे उर में सदा'
आदि के अनुरोध से कदाचित् पहला अर्थ लगाना ही समीचीन होगा !
उदय छत अन्य ग्रंथों में भी उ्द उर' का प्रयोग हुआ है । डा० याज्षिक
से प्राप्त 'रामकरुना ताटिक' तथा चीरचिन्तामणि! नामक उदय के
प्रथों से दो उदाहरण दिए जाते हे--
सुभिरि राम छवि चंद काम प्रन सुपसागर ।
पूरन कला प्रकास उदें उर होत उजागर ॥
करे हुंत कर जोरि के करों कवित परनाम ।॥
दरनहु दल हनुसान फो लद्धिमन को संग्राम ॥ राम कझता करें।
जे
छू
User Reviews
No Reviews | Add Yours...