सावयधम्मदोहा | Saavayadhammadoha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बट] साययघम्मदोद्दा एक प्रश्न और है जिस पर भो यद्दा कुछ विचार कर लेना आव- इयक प्रतीत द्वोता है | दोहा ने, २३२ में जे दुछ कहां ग्रया हे उसस्ने ज्ञात द्ोता है छि उसके ऊपर के दोहों को सख्या मूलत २२० थी। यद्यपि भर. प्रति में “ विंमुतरईं ” की जगद “ ब'वीमुत्तरइ ” प्राठ है पर बह स्पष्टत कास्पित है। क्षब प्रश्न यह दे कि बह दौन सा दोद्ा दे जो सूल में नहीं था तथा जिसके कारण हमोरे दोई की रुख्या २२० की जगद्ट २२१ दोगई द्व। जेसा उपर कद आये हें, ज. और म. प्रतियों में दोद्या न २१९ नहीं दे। क्‍या चह्दी दोहा पं छे का जोडा हुआ दे? बह दोहा इतना सुन्दर तथा प्रथकार की शैली के इतना भ्रुबूछ है कि उसे थ्रक्षिप्त मानने को भी मह्दी चाहता यद्यवे दोहा न २२१ की प्रथय पाक ध्राय वही होने से यह भी सभव जान पडता है छि वह भ्रक्षेत्त हो | इसका यथार्थ निर्षेय कर निकालना बडा कठिन दै भौर इसकी कोई बडी आवश्यकता भी प्रतीत नहीं द्वेती । भर्दृदरि भारि छूव शतकों में आ्राय सौ से भपिक्र हैं दोदे शये णते हैं। ४ भाषा और व्याकरण: प्रस्तुत अन्य धार्मिक उपदेश तथा सूचि की दृष्टे से तो सुन्दर है ही पर उसका और भी विशेष मद॒त्व उसकी भाषा में है। जन भद्ारों को सूचियों में इस भाषा के धन्य प्रय “मागघधी भमधा ” के नाम से दर्ज दिए हुए मिलते दें हिन्द बढ मापा न तो मायवी दे और न धन्य शैरसेनों जादि भ्राचीन प्र रत | किन्तु इन प्राइतों न प्रचलित देशी भाषाओं के पूरे जो रूप धारण किया या वद्दी इन अन्यों में पाया जाता ६। यह उनझा विकृम्धित या सप्रश्न/् रप है और इसी से इस भाषा का नाम अपकगा था आअवहद्त पडा | भ्राइत व श्पभ्रण मप यें मय समय पर जनस'थ रण को आप रही हैं भौर इस्ोलिये वे अपने अपने समय में धत्धत हे भी अधिव मधुर भर प्रिय गिनी जाती थीं। ऋछमचरी झे यनों राजशोसर




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