श्री यतीन्द्र विहार - दिग्दर्शन भाग - 4 | Shri Yatindravihar - Digdarshan Bhag - 4
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
888 KB
कुल पष्ठ :
33
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(५)
पर यह गाँव आवबाद है | इसके उत्तर में भावनगरखाड़ी
का रण है, जो केदल खारी, काली, सृत्तिकामय और घांस-
वृक्ष श॒न्य है | गाँव में बीसाश्रीमाली जनों के एक ही
परिवार के त्तीन घर हैं, जो अच्छे भावुक और विवेकद्न हैं |
साधु साच्चियों के लिये एक छोटा दो मंजिला उपाश्रय है
जिसके ऊपर के होल में सिद्धचक्र, महाब्रीर और ग्रौतम-
स्वामी की तस्वीरें विराजमान हैं, यहाँ के श्रावक्त भ्राविका
इन्द्रींका हमेशां नियमतः दर्शन-पूजन करते दें। गाँव से
आधा माइछ के फासकले पर हिसार ' नामक इंगरी है,
जिसके ऊपर जेनमन्दिर का खंडेहर पड़ा है | कहा जाता
हैं कि गज़ा कुमारपाल जब सिद्धाचलज्ञी का संघ लेकर यहाँ
आये थे, तब उन्होंने इस हंगरी पर श्रीपाश्वनाथ का विशाल
जिनालय बनवाया था।
» बला ( बछभीपुर )--
भावनगर से २० मीइल दूर पश्चिम में घेलारानदी के
कांटिपर क्राठीयावाड़ एजेन्सी के तीसरे नम्बर के संस्थानों
में से यह एक है और उस संस्थान की राज्यधानी का ग्ुख्य
शहर हूं। इसका प्राचीन नाम “वह्भीपुर' हैं और अब भी
जूने इंग से ही बसा हुआ है । सिद्धाचल की तलेटी पहले
यहाँ पर थी और यात्रियों को माता भी यहीं दिया जाता
था। शिछादित्य सप्तम के समय काकुसेठ के द्वारा चल्लमी का
नाथ १३०० सौ वर्ष पहले सन् ६७५ इस्त्री में हुआ था। सैन-
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