श्वेताश्वतरोपनिपद् | Shvetashvatropnishad

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Shvetashvatropnishad by चन्दूलाल दुबे - Chandulal Dubey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४) कि जड़-घेतम दोनोंसे परे इनझ्ा सधिष्ठाता भौर प्रेर्दव शो एक देंध है पही सपनी मायाशक्तिसे झगतका भप्रिम्तमिमिक्तोपादाग कारण है भौर उसका साद्षास्प्वार दोनंपर ही सीय मापाके चक्रस रुछ ऐो सकता है | इसे कई मम्पत्र दूँढ़नेश्नी भायश्पकरता शहाँ है । पए स्थदा अपने सस्ताररणमें ही स्पित है। इस सपन अम्तरास्मासे मिस्स कोई भौर देव सर्दी है। तथा यद्दी भोक्ठा; भोग्य भौर प्रेरक भी कहा जाता दे । इस प्रदयर प्रथम भ्ष्पायम अगल्कारणक्य लिएय कर प्रणवच्चिरत पूर्वक ध्यामास्पासकी ही रुखफे साझात्कारक्य साधम बताया णया है। इसका विशेष पियरण द्वितीय अध्यायमें है | पहाँ स्पासकी यिधि इ्यामके योग्प स्थाम, पोगषछी प्रथम प्रपृक्ति और उसके फसका बड़ा छुम्द्र बर्णन किया गया है। इस तरह साधहका निप्रपण कर फिर दुतीय भष्पापमें साम्पक्य प्रतिपादम किया द । पर्दों रख एक ही तस्वक्प पदके सशुण-साकाररूपसे फिर अम्ठयामी भीर विगटरूपसे हया पश्दमे शुद्रूपसे शिरूपण हुभा है | ऋतुर्ण भष्पायमें तत्पदोयी प्राप्ति मौर मायासे मुक्त दोमेके छिये रस देयक्ती स्तुति की गयी है ठथा अनेक मद्यरसे डसफे जरूप और महस्वक्य दर्पेश किया गया है। फश्मम भ्रष्पाये कवर अक्षर और इस दोलोकि प्रेरक परमात्मार्क खक्रपोक्य स्पप्रीकरण दहुभा है। वह्शं सझरका भोर त्व भप्तर (जीव ) का भोक्‍वृत्प भौर परमार्माझा निपादत्य बतसाया गया है तथा यह भौ भवर्शित किया है कि जीव भपमे छकस्पके भनुसार विभिष्प योनियोको भाप्त दोता है और परमारमाका क्ञाम हामेपर सय प्रकारक बल्परंसि मुक्त दो जाता है । इसके प्णात्‌ फ़्ठ़े स्यायमें भी पस्मास्माके रूप औौए सइस््यक्य ही प्रतिपादन करते ह्वए पम्ठमे रुसीके झ्ामसे सारे वु कोसी मिदृच्ि घतस्पयी है भौर यह कटा है कि रूस देबकोे जाते विभा पुःख्थोक्ा भम्त दोगा इसी प्रव्यर मसम्भव है जैसे प्यापक भौर मिरवएव माकाशको अमक्ेके समान रूपेटया। इस प्रकार इस रुपशिपदूर्मे भ्रादिसे धरप्दतक केबछ परमार्चतर्द बगरही विकएज हुमा है | फिए अस्तमे ए% सम्पद्वाएा इस विद्याक्त




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