युक्तनुशासनस्य | Yuktnushasanasya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
198
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)टोकासटहित ९
२ प्र
व्रेदा सर्वेषां युक्तिशाखाविरोधिवाक् सिद्ध इस्यथे7 । ततो<य॑
सप्तुदायाथ: / स्तुतिगोचरो भगवान्वीर: परमात्मा ऋद्धपानलात
यरतु नेव॑ स'न बद्धेपानो यथा रथ्याएुरुपस्त्था चाय भग-
वानिति | तद्बद्धधेमानो भगवान विशीणदोषःशयपाशवन्धत्वात्
यस्तु नेत्थं स न तथा यथा पिथ्याहक् तेथा च भगवान इति।
विशीशदोषाशयपाशबंधो भगवान् कोर्त्या महत्या शरुवि बद्धे-
मानत्वात् यस्तु नेबंबिध; सन तथा यथा प्रसिद्धो (नाप्त), की-
स्या महत्या भुवि वड़मान्थ भगवान तस्माद्रिशीणदोपाशय-
पाशबंध इति केवलव्यतिरेकी हेतुरन्यथोपपात्तिनियर्मानश्येक-
लक्षण॒त्वात् स्वसाध्ये साधयत्येव तथाउञ्मपीमार्सायों व्या-
सतः सम्थितस्वात् । किलक्षणा स्तुतियेद्गोचरल मां नेतु-
मिच्छन्ति भवन््त इति भगवता पश्ने कृत इव सूर्य) प्राहु।-
याथात्यमुल्लड्ध्य गुणोदयाख्या
लोके स्तुतिभूरिग॒णोदधेस्ते ।
अणिष्ठमप्येशमराक्नुवन्तो
ववतुं जिन लां किमिव स्तुयाम ॥ २॥
'याथात्म्यपृल्ंध्य गुणोदयाख्या लोके स्तुति!” इति चतुर-
शीतिलेक्षएणण गुण>स्वेपां गुशानां यायत्म्य यथादस्थितरव-
भावस्तदुल्ंघ्य शुणोदयस्याख्या लोके स्तुतिरिति लक्ष्यते
यदयेव तदा स्तुतिकर््तारस्तावन्तः कि शक्ता;। भगवता इति-
पर्यजुयुक्ता। भाहु।--
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