वर्ण व्यवस्था | Varn Vyavastha

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Varn Vyavastha  by दीपचन्द्र आचार्य - Deepachandra Aacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमि का! यह मात है पालत है दिन रन! सब मिलि कर रखा करो तब पावो खुख चेन ॥ पुस्तक लिखने के कारण । यह निश्चित वात है कि जब तक किसी व्यक्ति को रोग नहीं द्वोता वेद को स्मण नहीं करता । बिना ओपधि के रोग दूर नहीं होता । रोग निवारण का मुख्य साधन शास्त्र ही है, यदि उसे ठीक प्रयोग में लाया जाय । कहद्दा भी है शास्रण्यप्रीत्यापि भवन्ति सूखा: यस्तु क्रियावान पुरुष; सः विद्वान । सुचिन्तितमातुरओपधीनाम न नाममात्रेण करोत्यरोग्यम्‌॥ १ ॥ शास्त्र सतुष्य जाति का जीवन आधार है, वेद से वढ़ कर इस जगत में कोई प्रन्थ नहीं सब विद्वानों का मत है परन्तु वेद शास्त्री के महत्व को लोग सून गये । प्रैर उनके विरुद्ध अनेक प्न्‍न्थ वन गये, जिसके कारण इस एक मलुष्य जाति के हजारों लाखों विभाग हो गये और एक दूसरे को घातक बन गये। अनेक घर्मो के नास से बन गये वास्तव में धर्म एक है। भर से खाते पीते है, कामों से सुनते हैं, हवथो से काम करते हैं, पैरों से चलते हैं, यह धर्म प्राणीमात्र में पाया जाता है। अग्नि प्रकाश करती तथा जलाती है, प्रृथिवी अन्नादि पदाथ देती है, सूर्य चन्द्र आदि अपने अपने कार्य को नित्त करते हैं यह धर है। परन्तु कोई ईसाई, कोई मुसलमान, कोई सिक्ख, कोई दाहुपन्‍्थी, कोई कवीरपंथी, कोई त्रह्मसमाजी, कोई राधास्वामी, कोई हिन्दू कोई आयेसमाजी इसी प्रकार अनेक नाम से जुद्दे २ हो गये एक दूसरे का खंडन करने लग गये । परन्तु एकता का सार्ग न आया। आज कांम्रेस के लाम से घहुत से लोग काये करते हैं. परन्तु कोई २ एक दूसरे करो भी घणा से देखते हैं। जिसके हजारो प्रसाण हैं । चाहे किसी भीदेशकेक्‍्योंन हों परन्तु धर्म सब का एक्र है जैसा कि हम ने ऊपर लिखा है यही वात वेद शात्र पुराणादि भ्न्‍्थों में पाई जाती है । विना वेद शाज्ों




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