दयानन्द दिग्विजयम् | Dayanand Digvijayam

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Dayanand Digvijayam by खिलानन्द शर्मा - Khilanand Sharma

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( २ ) ईश्वर के गुर को स्सरणा किया न घर्मे कमाया न ब्रह्मचरंथ साधा न बेदादि सत्य दारत्र देखे न उपनिषद्‌ू पड़े इन दुष्ट काव्यो म ही समय खराब हुआ | इसलिए अब चलिए किसी धार्मिक पुरुष के जीवन का अवलस्व लें जा वैदिक घर्म के प्रचार क परापकारी ब्रह्मयारी निलोभ घर्म के समस्त लक्षणां पर चलनेचाले हो । मेरी असुमति में ते इस कराल कलिकाल में बेदी की रक्षा करनेवाले आनन्द्कन्द जगदानन्द ऋषि द्यानन्द से भिन्न त्रार ऐसा केाई प्रतीत नहीं होता जा अनजुकरणीय हो । इस समय में आपदी ऐसा उत्पन्न हुए जाकि गये हुए वैदिक समय के फिर दुबारा स्थापित कर गये । खसार के उपकाराथ अपना माक्षानन्द छेड बिष तक खा लिया । अपने दारी ररूपी बन्घन में पडकर ससार को मुक्तबन्घन कर दिया । गुरुकुल अनाथालय ख्त्री-दिक्षा विघधवाद्धार आदि अनेक खत्‌- कार्य प्रस्तुत किये इसलिए आपके जीवन का ही अजुुकरण कीजिए । जिस- से फिर भी आनन्द प्राप्त हो कष्ट न होवे घर्मे अथे काम माक्ष हस्तगत हो । अब कुछ महाकाव्य के विषय में विचार करना चाहिए । महाकाव्य उसे कहते हैं जा साहित्यद्पण में लिखे हुए महदाकाव्य के लक्षणा से सम्बन्ध रखता हो । उनमें पहला लक्षण (सगबन्ध है) । इसीलिए अध्याया से सम्बन्ध रखने- चाले ग्रन्थ महाकाव्य नहीं कहला सकते । दूसरा लक्षण यह है कि ( उसके भीतर वर्णनीय नायक देव हो ) वेदिक सिद्धान्त में देव दाब्द्‌ का अथे विद्वान माना जाता है जैसा दातपथ में लिखा है कि--विद्वासा हि देवा वह यहाँ पर स्वत सिद्ध है । तीसरा खक्षण इस प्रकार है कि ( म्उड्ार वार श्रार झान्त ) इन तीन रसा में काई रस अड़ी होना चाहिए। इस महाकाव्य में जहाँ जहा पर चास््राथ का समय उपस्थित हुआ है वहाँ वहाँ पर चीर श्रार तदितर स्थल में द्वान्त दाना ही रस अड़ी बने इुए है । चैाथा लक्षण कहता है कि महाकाव्य में या ता काई ऐतिहासिक वृत्त हो या किसी सज्ञन का वणोन हो यहाँ पर महषि का वर्यान है साथ ही स्टिक्रमाचुकूल ग्रार भी वर्णन स्थल स्थल में किया गया है । पॉचवों लक्षण इस बात के जतला रहा है कि महाकाव्य के आरम्म में या तो नमस्कार या आशीवाद्‌ या किसी वस्तु का नि्देशा होना चाहिए | यहाँ पर ग्रन्थ के आरम्भ में परमात्मा के लिए नमस्कार किया गया है । मध्य मे मजूलाधेक अथ दाब्द का प्रयोग किया गया है। अन्त में ईश्वर का मुख्य नाम ओइम रकक्‍खा है जाकि इसके पढन का फलस्वरूप है । न




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