प्रबन्ध रत्नाकर | Prabandh Ratnakar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
643
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रमेशचन्द्र शुक्ल - Rameshchandra Shukla
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बेदाज्ञानि विब्च प्रती च्यप्रधीना वेंदिकवाड मय-सेवा प्र
करप --वदाना द्वितीयमड्मस्ति कल्प । बददिद्दिताना कर्मणा व्यवस्था
अन क्रमपूर्ुफ़ क्ल्पशासत्रे कलिपितम्। उक्तव--क्रपोबदविदिताना क््मणा
मालुप्न्थेण कत्पताशाखम! । कल्पनासूताणि सॉौन्तिचतुविधानिं--( 4) श्रीत
सूपम, ( २) शब्यसयम, (३) धर्मसतम, ( ४) शट्यसूतस । श्रीतसूजे
आद्वागग्रन्थवणितना श्रौताप़्ि यज्ञाना क्रमयद्ध वर्गन चर्तते । सृद्यसूत्े गृद्या
प्रिसस्यद्वयागान मुपनयनविवाहश्राद्धादिसस्काराणा विस्तृत विवरण अस्तुत
विद्यते | धर्मसूत चतुण्णां बर्णानामाश्रमाणज् कवि राज्ञामपि कर्त॑व्यानि निर्दि
हानि सन्ति । इमाम्यब जीणि बस्तुन प्रधानानि क्क्पसूताणि मतानि। चतुर्थ
आुस्पसूजन्तु घंदि निमाणप्रजार विशेषत प्रतिपादयति 1 सूञस्या स्य वैज्ञानिक
मद्ृ्घमरित 1 *
श्रीतसूजोपपादितो विषयों बस्तुतों छुराद्द । न तन जनसामान्यस्य छृते
जाकपगस्। धार्मिक्च्श्या औतसूतस्य विपयो मद्द्मझाली। जाउनिके युगे
आद्यागामा प्रिधातर विरल्तामुपेतम । प्राचीनस्य युगस्य धामिरेपु विधानेपु
याशिकेएु कर्मसु च यपा रचिरजुरागश् तेरवश्यमेव श्रौतसूजाणि जनुशीर
नीयानि | ऋगेद्स्य आख्वलायन शाद्भायनम्व इत्यते द्वे श्रीतसूज्े स्त । गुद्य
सूझे सा सदीय आश्वकायन शाद्यायन चस््त । शुकयज॒वेदम्य श्रौतसूयमे क्मेव
कॉस्यायनश्रीतसूजमस्ति । सुद्यसूतयास्थेकमेव पारस्वकरगृहासूत्र विद्यते। कृष्ण
यजषुरेंद्सम्यद्धानि श्रौतसूनाणि-्वीधायन आपस्तम्व हिरण्यक्रेशि बेखानस भार
द्वाज सानयनासबेयानि सन्ति । ध्वस्मित _' _ बदे चीघायन चीधायन शबयमतमपि सुलभ
मस्ति । सामवदीयप्रूपसूजेपु आपयथ फ्णएपसून प्राचीमतम्॥ इद छाव्यायनात्
आऔत्तसूतादपि भाचीनतरमिति निगयते | वंदस्यास्थ स्ुप्य श॒द्मसूस कौशुस
आखाय गोमिल गृद्यघून सुविदितम । जध्वेद्र्य भौतसूज वैदाननामम क्यि
जदीय शद्यधुय वौशिकसतक वेधम्। शब्सूतमिद श्राचीनभारतीययातुतिद्या
पिपयिक्तामनुपमा च सामी अ्स्तौति॥ धर्मसूताणि कस्पस्थ गौरवमयान्यद्वानि
सात पर न सास्मत धनिद्माखवाया धर्मसूयाणि ,छएभ्याले। यम्मामयधमंसूजमा
झथय मउरखतेनिर्माण सझत तद॒दि नाथपयन्तसुपद्यध भयति । सुतरा चौथा
चअभापस्तस्प द्रिण्यकेटिसस्पसूआपामुपल्मीय पूर्गतया भयति अत प्य तदी
आनि धर्मसूत्राष्यपि प्राप्यते + धर्मसूतयु खतुर्यर्णक्तयानि क्माणि, व्यवहागा
शाचपर्म आश्वमधर्म विशद , दायभाग परायश्रिसतम, निरयनेमिसिक कर्म...
User Reviews
No Reviews | Add Yours...