हिंदी पद्म पारिजात भाग २ | Hindi Padya Parijat [ Part - Ii ]

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Hindi Padya Parijat [ Part - Ii ] by नारोत्तमदास स्वामी - Narottamdas Swami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कपीरदास १३ जाके दरसन साहब दरसे*, अनहद सबद सुनावे। माया क॑ सुस दुस करि माने, सग न सुपन चलावे ॥ निस-दिन सतसगति में राचै, सबद में सुरत समाबे । कष्ट कप्रीर, ताको भय नाहो, निरभय पद परसावे ॥ (३) अ्रवधू भूले को धर लावे, सो जन हमको भाव ॥ धर में भाग, ज्ञेग धर ही से, घर तल बन नहि जावे। बन के गए कक्षपना उपजे, तब थौं कहा समा १ घर में भुक्ति, मुक्ति घर हो में, जो गुरु अलस लसखावे | सहज सुझ्न में रहे समाना, सहज समाधि लगावे॥ धर में बस्तु, बरतु में घर है, घर ही बस्तु मिलाते। कहे कपीर, सुनो हो अवधू, ज्याँ का त्यों ठहरावे॥ (४) जागु, पियारी, भ्रब का सोवे ? रैन गई, दिन काहे को सेव ? जिन जागा तिन मानिऊ पाया। ते बारी सब से गँवाया ॥ पिय तेरे चतुर, मूरस तूँ नारी | कबहूँन पिय की सेल सवारी ।॥| ते” थारी बारापन फीन्हों। भर जाबन पिय अपन न चीन्हो।। जागु, देख, पिय सेज न तोरे। ताहि छाँडि उठ गए सबेरे ॥ कह कपीर, साई धुन जागे | सबद-बान उर अतर लागे।॥ (४) समझ देखु, मन मौत पियरवा, श्रासिक होकर सोना क्‍या रे ) रूसा-सूसा गरम का टुकडा फीफा श्रार सलोना क्‍या रे।




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