संस्कृत कवियों की अनोखी शूभ | Sanskrit Kaviyon Ki Anokhi Shubh

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Book Image : संस्कृत कवियों की अनोखी शूभ  - Sanskrit Kaviyon Ki Anokhi Shubh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के निवेदन काव्य की परिभाषा सस्कृत के भिन्‍न-भिन्‍न कविमो, विद्वानो और साहित्यकारो ने झ्पने-अपने ढंग पर अलग-शझलग की है। किसी ने काव्य की उप सर्वालकार-विशभूषिता मतोरभा सुन्दरी स्त्री से दी है, जिसका शरोर शब्द और अ्रथ॑, जिसका श्रात्मा रस और जिसके आभूषण उपमा, श्रनुप्रास आदि अलकार हैं । किसी ने रस को काव्य का प्राण माता है। बिना रस के काव्य वैसा ही निर्जीव है जैसे विना प्राण के दरीर । किसी ने ध्वनि को ही काव्य का आत्मा स्वीकार किया है ) किसी ने काव्य के गुणो से युक्त तथा काव्य के दोषो से मुक्त, शब्द और श्रर्थ के समूह को, काव्य की पदवी दी है। किसी ने रमणोगेय अर्थ के देनेवाले शाब्दों को ही कार्व्य कहा है। किसी ने श्ोचित्य (97०- 97९09) अंर्थीत्‌ दब्दो के उचित प्रयोग को हो काव्य का मुख्य तत्व गाना है । किसी ने काव्य मे भलकारो को ही सबसे अधिक महत्व दिया है, इत्यादि 1 श् जड किल्तु काव्य की परिभाषा या व्याख्या जो भो हो, सबका तोड इस यात पर है वि उत्तर काव्य वही है जिसमे कोई चमत्कार हो, वोई विचियता हो, कोई अ्रनोप्रापन हो, बहने का ढंग नया हो, केबल पिष्टपेपण या सुववन्दी मात्र म हो। झाँख राबके है पर चितवन में भेद है। आँख में जो चितवन है वही काव्य में चमत्वार या अ्नोसापन है | इसी दृष्टि को लेकर ही मैंने इस पुस्वक में अनोखी सूझ के कुछ सस्ट्ृत इलोरो का




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