ब्रह्मवैवर्त्त पुराणम् भाग २ | Bragmavaivartta Puranam Bhaag 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
800
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १३६ )
तुम्हारे में और मेरे में कोई भी भेद नहीं है जैसे छुग्ध में घबछता, अप्रि में
दाहिका शक्ति और ४थ्वी में गनध दे उसी तरह हंस दोनों में कोई भेद नहीं दै।
जैसे कुम्द्वार मिट्टी के विना घट को बनाने में समर्थ नहीं तथा स्वर्णकार सुवर्ण के
बिना छुण्डल नहीं वना सकता। उसी तरह में तुम्हारे बिना सृष्टि रचना में
, समर्थ नहीं हूं और हे राधे “सष्टेराघारभूता स्वें बीजरूपो5्हमच्युतः” तुम्हारे बिना
मुझे ऋूष्ण नाम से पुकारते हैं आर तुम्दारे रहने से, श्रीकृष्ण नाम से । जो कोई
राधा और कृष्ण में सेद समभते हैं तथा नित्दा करते हैं उनको नरक की प्राप्ति '
होती दै। » त्रद्माजी ने राधाक्रष्ण/की स्तुति करते समय कहा कि-- ।
घुरुपाश्य दरेसंशास्वदंशा निखिल: स्रियः । आत्मना देहरूपा स्वमस्याधारस्त्थमेव दि
, अस्यानुप्राणेस्तव॑ सातस्त्वत्ाणैरयमीखरम्का......
ब्द्याजी को राधा का वरदान । राधा और श्रीकृष्णका वेद्मन्त्रोच्रारण-
पूवेक विवाह) श्रीकृष्ण की रासक्रीड़ा एवं श्रीकृष्ण का अन्तर्धान और राघा का
विरद । श्रीकृष्ण का यशोदा के पास गमन।
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श्् बकप्ररम्बकेशीनामुद्धारर्णमम् + छ्२२
> बकादीनां पूब्नेजन्मइत्तान्तवर्णनस् छ२५
चरेमासिकब्रतवर्णनस् घ्२७
गोपानां बृन्दाबनगमनस् ६३१
एक समय श्रीकृष्ण अन्य चालक एवं घलढूरास को साथ लेकर श्रीवन में
क्रीड़ा करने गये वद्दां से मघुवन पहुँचे। वहां एक देत्य वक के आकारवालछा
आया आऔर श्रीकृष्ण को नियछ गया जैसे अगस्त्यजी ने वातापी को निगल
लिया था । यद्दू देखकर सब द्वाह्मकार करने छगे। इन्द्र ने वक के ऊपर
मुनि के अस्थि से चना हुआ चस्र छोड़ा जिससे उसका एक पक्ष जल गया।
अन्द्रमा ने घक पर शीतासत्र छोड़ा उससे शीतात द्वो गया। यमराज ने यमद॒ण्ड,
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