प्रतिश्रुत पीढी | Pratishrut Pidii

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Book Image : प्रतिश्रुत पीढी  - Pratishrut Pidii

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

डॉ रणजीत - Dr Ranjeet

परिचय

जन्म : 20 अगस्त 1937

जन्म स्थान : ग्राम कटार, जिला भीलवाड़ा, राजस्थान, भारत

भाषा : हिंदी

विधाएँ : कविता, कहानी, आलोचना

प्रकाशन : दस काव्य संकलनों सहित कुल मिलाकर तीस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित, जिनमे प्रमुख हैं --प्रतिनिधि कविताएं और प्रगति शील कविता के मील पत्थर तथा आज़ादी के परवाने (भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की हुतात्माओं की जीवनियां)। सामाजिक सरोकारों पर सम्पादित त्रयी : धर्म और बर्बरता ,साम्प्रदायिकता का ज़हर और जाति का जंजाल। जाने माने निरीश्वरवादियों के जीवन संघर्ष पर : भारत के प्रख्यात नास्तिक और विश्व के विख्यात नास्तिक।

मुख्य कृतियाँ -

कविता संग्रह : ये सपने : ये प्रेत, अभि

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यद्यपि नौ प्रगतिशील कविता भी भ्पने मूल रूप से सामाजिक कविता है तथापि उसकी सामाजिकता सपाट, सूतरारक प्रीर यां धिक सामा- जिकता नहीं है, घाहर से थोपी हुई सामाजिकता नहीं है । वहू एक जटिल रौर जोव-त सामाजिकता है। यही फारण है कि उसमे ब्यक्तित्व के हननं की नहीं, उसके उचित श्रौर स्वस्थ विकास की स्थापना है । नरेश मेहता की एक कविता--श्रनुनय--से में श्र८नो बात की पुष्टि करू गा यहां वहां लोग ही लोग है में कहा हू? तुम्हारे परो के नीचे मेरा नाम कहीं दब गया है उठा लेने दो मेरे लिये बहू मूल्य है ! स्लोग' श्रर्थातृ मोड : श्रविवेकपूण, आक्रमक सामाजिकता । भ्नामः यानो व्यक्तित्व, जो किं कवि के लिए महत्वपू है। पर इस का मतलब यह नहीं कि वह सामाजिकता को व्यक्तित्व को शात्र, के रुप में हो कल्पित करता है । नहीं । उसे लोगों की देहो से गन्ध नहीं श्राती । वर प्रपने नाम के श्रतिरिष्त परिथ्रम की गध को सी सूस्यवान समकता हैं 1 ' चहू समानदोही व्यक्तिवादी नहीं, ब्यवितत्व को रक्षा चाहने वाला समाज * दादी है भागों हम सब श्रपने अपने माम खोज निकालें मीडो की झसादधानियों से जो कुचल गये हैं कपोकि वे सुर्य हैं ध्रपने को जानने क॑ लिए फ कब हम लोग होते हैं भौर कद नहीं । पर नयो प्रयततिनोल एविता का यह व्यक्ति शोध नयी कविता के व्यक्ति की तरहू नदी का हीप नहीं है. हम नहीं हैं हीप जोवन की नदी कं सोसहू




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