कालिकापुराणम | Kalikapuranam
श्रेणी : पौराणिक / Mythological, हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
40 MB
कुल पष्ठ :
698
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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आसाम का कामरूप प्रदेश है अथवा आसाम का वह भाग है जो बगाल के सन्नि-
कट है । '
कालिकापुराण के रचनाकाल के विषय मे इृदमित्यि रूप से निर्णय करना
कठिन व्यापार है। रचना-काल का कोई भी सकेत ग्रन्थ के भीतर उपलब्ध नहीं
होता । केवल बाह्य साक्ष्य के ऊपर अवलूम्बित होना पडता है। कालिकापुराण,
का प्राचीनतम निर्देश नान्यदेव के 'भरतभाष्य” मे उपलब्ध होता है. --
इति रोविन्दक समाप्तम् ॥ कालिकाख्यपुराणे । यत्पुराणे पुरुषेरित रोबि-
न्दकाभिध गीत नान्यमहीभुजा । इति रोविन्दक प्रोक्त स्यादुत्तरमत परम ॥
( भाष्य के हस्तलछेख के पृष्ठ १३० पर, मद्रास )
'भरतभाष्य” के रचयिता नान््यदेव महीपति मिथिला के राजा नान्यदेव से
अभिन्न माने जाते है जिसका राज्यकाल ईस्वी १०९७ से लेकर ११३३ है | डा०
सिलवन छेवी ने सप्रमाण सिद्ध किया है कि नान््यदेव का सिहासनाझुढ होने
का काल १०९७ ई० में पडता है ।
फलत कालिकापुराण का रचनाकाल १०५० ई० से अनन्तर नही हो
सकता । पूव॑तन मर्यादा का उल्लेख हेमाद्वि के उस उद्धरण के द्वारा किया गया
है जिसमे कालिकापुराण ही वास्तव में भागवतपुराण माना गया है ( यदिद
कालिकार्य च मूल भागवत स्मृतम् )। यह उल्लेख श्रीमदुभागवत की पूर्ण
प्रतिष्ठा तथा प्रसिद्धि प्राप्त कर लेने के पश्चात् युग का सकेत करता है। श्रीमद्-
भागवत की रचना का काल ईस्वी सन् से षष्ठ झ़तक निर्णीत है । रचना के
बाद एक शताब्दी का समय भागवत को प्रतिष्ठित तथा प्रख्यात होने में लूगा
होगा-ऐसा अनुमान किया जा सकता है। उसी युग में मुठ कालिकापुराण की
रचना सम्भावित है। फलूत कालिकापुराण को सप्तम छाती में मानना उचित
होगा । वर्तमान कालिकापुराण के सर्वाधिक प्राचीन निद्देश बगाल के ग्रन्थकार
शूलपाणि तथा मैथिल विद्यापति के द्वारा किये गये हैं। ये दोनो ग्रत्थकार १४
छाती के लेखक है। शुलूपाणि ने दुर्गोत्सव-विवेक में तथा विद्यापति ने अपने
दुर्गाभक्तितरगिणी में पुजाविषयक इलोको को उद्धृत किया है। कालिका-
पुराण कालिदास के कुमारसम्भव से तथा माच के शिशुपालवध ( ७०० ई० )
से परिचय रखता है। फलत अष्टमी शती से ( ७५० ई० ) वह कथमपि प्राचीन
नहीं हो सकता | ग्रन्थ की रचना के अनन्तर प्रसिद्धि तथा प्रतिष्ठा पाने के लिए
दलपाणि तथा विद्यापति से कम से कम दो तीन सौ वर्ष का काछ-व्यवधान
१ द्रष्ठव्य बलदेव उपाध्याय--भागबत सप्रदाय पृ० १५१--१४३, वाराणसी,
सं० २०१०
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rakesh jain
at 2020-11-25 09:25:37