कालिकापुराणम | Kalikapuranam

Kalikapuranam by श्रीविश्वनारायण शास्त्री - Sri Vishwanarayan Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( «६ ) आसाम का कामरूप प्रदेश है अथवा आसाम का वह भाग है जो बगाल के सन्नि- कट है । ' कालिकापुराण के रचनाकाल के विषय मे इृदमित्यि रूप से निर्णय करना कठिन व्यापार है। रचना-काल का कोई भी सकेत ग्रन्थ के भीतर उपलब्ध नहीं होता । केवल बाह्य साक्ष्य के ऊपर अवलूम्बित होना पडता है। कालिकापुराण, का प्राचीनतम निर्देश नान्यदेव के 'भरतभाष्य” मे उपलब्ध होता है. -- इति रोविन्दक समाप्तम्‌ ॥ कालिकाख्यपुराणे । यत्पुराणे पुरुषेरित रोबि- न्दकाभिध गीत नान्यमहीभुजा । इति रोविन्दक प्रोक्त स्यादुत्तरमत परम ॥ ( भाष्य के हस्तलछेख के पृष्ठ १३० पर, मद्रास ) 'भरतभाष्य” के रचयिता नान्‍्यदेव महीपति मिथिला के राजा नान्यदेव से अभिन्न माने जाते है जिसका राज्यकाल ईस्वी १०९७ से लेकर ११३३ है | डा० सिलवन छेवी ने सप्रमाण सिद्ध किया है कि नान्‍्यदेव का सिहासनाझुढ होने का काल १०९७ ई० में पडता है । फलत कालिकापुराण का रचनाकाल १०५० ई० से अनन्तर नही हो सकता । पूव॑तन मर्यादा का उल्लेख हेमाद्वि के उस उद्धरण के द्वारा किया गया है जिसमे कालिकापुराण ही वास्तव में भागवतपुराण माना गया है ( यदिद कालिकार्य च मूल भागवत स्मृतम्‌ )। यह उल्लेख श्रीमदुभागवत की पूर्ण प्रतिष्ठा तथा प्रसिद्धि प्राप्त कर लेने के पश्चात्‌ युग का सकेत करता है। श्रीमद्‌- भागवत की रचना का काल ईस्वी सन्‌ से षष्ठ झ़तक निर्णीत है । रचना के बाद एक शताब्दी का समय भागवत को प्रतिष्ठित तथा प्रख्यात होने में लूगा होगा-ऐसा अनुमान किया जा सकता है। उसी युग में मुठ कालिकापुराण की रचना सम्भावित है। फलूत कालिकापुराण को सप्तम छाती में मानना उचित होगा । वर्तमान कालिकापुराण के सर्वाधिक प्राचीन निद्देश बगाल के ग्रन्थकार शूलपाणि तथा मैथिल विद्यापति के द्वारा किये गये हैं। ये दोनो ग्रत्थकार १४ छाती के लेखक है। शुलूपाणि ने दुर्गोत्सव-विवेक में तथा विद्यापति ने अपने दुर्गाभक्तितरगिणी में पुजाविषयक इलोको को उद्धृत किया है। कालिका- पुराण कालिदास के कुमारसम्भव से तथा माच के शिशुपालवध ( ७०० ई० ) से परिचय रखता है। फलत अष्टमी शती से ( ७५० ई० ) वह कथमपि प्राचीन नहीं हो सकता | ग्रन्थ की रचना के अनन्तर प्रसिद्धि तथा प्रतिष्ठा पाने के लिए दलपाणि तथा विद्यापति से कम से कम दो तीन सौ वर्ष का काछ-व्यवधान १ द्रष्ठव्य बलदेव उपाध्याय--भागबत सप्रदाय पृ० १५१--१४३, वाराणसी, सं० २०१०




User Reviews

  • rakesh jain

    at 2020-11-25 09:25:37
    Rated : 6 out of 10 stars.
    language of this book is Sanskrit Category of this book is Mythological/hinduism/Puran
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