चतुर्दश - भुवन | Chaturdash-bhuvan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
52
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्वद्वत्या!मि किसु नू मानिष्ये।ऋंग ६९६)
सो +- वि पतयत्त:) से रे दोचचों कान इचर उचर
दुर- २ गिर रहे छें (चज्ष:-- वि) रूरे सलयन भी इचर ऊचर
दूर २ द्ौड रहें हैं (डुदये > यद ५ इद्स ५ ज्योतिः:) हुद॒य से
स्थापित ऊो यह ज्ञानकूप ज्योति है चछ् भी (व + पतयरति)
दुर-भाग रहा हैं (द्रेआशचीः+ में+ सनः -- दि - चरक्ति) अति ,
दूरखूघ दिकय सें ध्यान सगाकर सेरा यह सन को दूर २
विचरण कर रहां है ऐसो ऊझवसूया में मल के समोप (किस
+स्विद् + चक्यारि) क्या में कहूंगा कौर (किस -- उ+चक्ु-
नएइनूण्य) कघर सच व्दरंगर 1
शित्ता--- प्रत्येक सन्तष्य का नित्य का यह अन्तर डे
रक्क कण, चक्षु , सन झादि इच्द्रिय किसी काये में सूघर न हरें
रहते । किल्चिन्सात् हो सरैका सिलने पर स्दट से इचर उचर
भागने लगते हैं । ऐसी अनवस्पित दशा में सचलष्य सदन कार्य
कद्रयपि नहों करसकता अतः्यहाँ मर्नाहे कि हे परसात्व-
देव! सेरे करे, . चयच , झहुद्यरूथ ज्ञाच और यह सभत सवबही
चारों तरफ-सोग रहेहें। के केसे आपके गया याऊं कैसे मनन
करूं । है सगवान् ! आशरेचोद करो जिससे फेरे सच इन्द्रिय
ससाहित हों श्नौरठनतक्षेद्राराक्ोपकीपरक विभूतियांदेखूं। इस
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