आर्थिक और औद्योगिक जीवन भाग - 1 | Arthik Aur Audyogik Jivan Bhag - 1

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Arthik Aur Audyogik Jivan Bhag - 1 by गाँधीजी - Gandhiji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका ३७ राजनीतित' स्वतय॒ताका महत्त्व कम है, असी बात नहीं है! गाधीणी अ्रिप्त बातको खूड समसते थ कि राजनीतिक आजादी तो होनी ही चाहिय। किसी भेव' देशका दुसरे देय पर राज्य करता यलत है और बिटगी आसन अब मसह्य बुराआ है! जिसलिज वे भारतक किम राजनांतित आजादी अवश्य चाहते थ। लेतिन दे यह भी समझते थ कि अग्रनावे भारत छाड देने मात्रते जादूकी तरह यहां सुलकी वर्षा नहीं होने एबवी। यूरोपवी हाव्तन आह सावधात कर दिया था। भुत्हाने समभ्त जिया था कि केबल राजनीतिक आजादी मित्र जातसे असी परिस्थितिया पदा नहा हां जाती जिनमें जनता अपना धासत आए करन हढगे। राजनीतिब' आजाती मिलनके वाद भी वह चंद छोगके द्वारा पाती जाती रहता है। बिसलिआ बुन्हाने ल्वि था केबल राजनीतिक सत्ताके अब हाथसे निवछ बर दुसरे हाथमें चल जातस मरी महत्त्वावाक्षाकों सताप न होगा हाणयवि मे भारतने राष्ट्रीय जीवनवे लिओे सत्ताता जिस प्रकार हस्तातरित होना परम जावश्यक मानता हू । यूरोपके लोग तिस्सटेह राजनीतिक सत्ता ता रखते है पर स्वराज्य नहीं। अधिया और अफ्रीयाके >ागाकों वे अपने आरिव' छाभके लिप्रे टूटते हू और अुनवे शासकन्वग जुषहू प्रजा सत्ताके पविन्न नाम १९ हुटते ह्‌। तो मदि यड़कों देखें तो रोग बहा हिपाओ देता है जा कि' भरतवपदों है। अिसल्भि मिलाज भी वही काम दे सकेगा। * अिसस प्रगट हा वाता हैं कि सरकार जनताश्ते ही हो मिस बातका व काफा नहीं मानत से, व॑ चाहते थे कि वह जनताकी तो हानी ह्दी आहिये सेविंग जनताबा स्थि और जमतावे दास चलायी जानवारी भी हानी चाहिप। स्व॒रा-यर्मे विधिष्ट बंप और सामाय जनता. स्वराज्यमं सामाथ जनताक हिताक। चुत छोगा था वर्गोके हिता पर तरजोह मिलना चाहिय । स्वराणय पर निहित स्वाथवाठापा जेपाधिवार हु था थे चसेग ही अुसपत सारा लय भुठायें असा नही हाना चाहिये! स्वरायकी योननामें सामाय॑ जततावर टित हा सर्वोपरि होता चाहिय। नस प्रत्येक हित जा बजबान फराष्यरे हितरे! विदद्ध हो मा दा बटला जाता चाहिय या यहि बहू बहश ने जा सबता हा ता भुसमें कमी वी जानी चाहिये। ४ शिसवा यह जब * हिहटी नवजीवतन ३-६-२५ 2 बय मिडिया, १७-९-/३१




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