ऊर्ध्वाङ्ग व्याधि विज्ञान | Urdhvanga Vyadhi Vigyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दो शब्द प्रसित गिरे सम॑ स्यात्‌ कज्जलं सिध्धु पात्रे । . सुर तरु वरशाखा लेखनी पत्र उुर्वीमू ॥ लिखति यदि गृह ला शारदा सब काल! दंदपि तब गमुणाना सीशपारन्याति।। ईश्वर की कृपाते पलञ्चाव तथा राजपूताना ग्रान्त में हिन्दी भाषा के प्रसारक एवं हिन्दी में आशुर्वेद के (अध्यापक ही वैद्य प्रखाली से) ग्रवल्ल इच्छुक श्रीस्वासी केशवानन्द क्षी महाराज द्वारा संचालित-जाट विद्यालय संगरियां वीकानेर के अन्तगंत आयुर्वेद विद्यालय में हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग के वेच्य- विशारद एवं आयुर्वेद र॒त्नके छात्रों को पढाने का सत्‌ १६४२ ६० से मुझे अवसर सिला है तभी से डध्योद्ध चिफ्रित्ता के प्रश्न पत्र में विद्यार्थियों को बहुत से इधर उधर फे अन्य जुटाने पड़ते थे परन्तु हिन्दी में आयुर्वेद के अन्य भाव प्रकाश आदि अधिक मूल्यवाब्‌ दोने. से-वहुत से असमर्थ छात्र उन पुस्तकों को न॑ खटपीदने के कारन केवल विपय॑ को- कोषियों में नोट करके ही अपना काय चलाते रहे है । श्री शुक्ल जी द्वारा लिखित इस बिपय की पुस्तक वहुतविस्दत ओर कई भागों में विभक्कहोने के




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