अश्विनो देवता | Ashvino Devata

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Book Image : अश्विनो देवता  - Ashvino Devata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[३] ३ दर्सा युवाकैत्र। सुत। नांत्वा वृक्तहिंप। । आ याँति रुद्रवर्तनी ..- इ्‌ ३ दर्खा । युवाक॑ंवः | सता: । नासंत्या ! वक्तडबंहिंपः आ | यातग । रुद्रव॒तेनी इति रुद्रधवर्तनी ॥३॥ ३ अन्ययः- दक्ष] नासस्या ! रद्गवतनी ! युवाक्रवः दृक्त-याहपः, छुदा:, जायाते ॥३॥ ३ अर्थ-दे ( दक्षा ) शब्रु के विगाशकर्वा ! भार ( नासप्या ) अ्सध से दूर रहनेवाले ( रुद्र-बतेनी | ) हे शत्रुओंफों रुदानेषाछ्े बीरों के मार्ग से जानेवाे तुम दोनों अश्वि देदो ! (युवारुय। बृक्त-घहिंप३) ये मिध्षित ड्विये हुए गोर जिनसे तिनके निकाछ डिये हैं ऐसे ( सुताए) अभी चोद हुए सोमरस्त को पीने के छिये ( भायातं ) हघर पाते 1 ९ भावा्- भश्वि देव शब्रुभों क! वध काने में प्रवीण, वीरभडके मारते से जानेवाले भौर कमी भप्तत्य क। भाश्रय करनेवाले नहीं हैं । धन्द अपने पाप्त बुकाना भौर न्‍चोडा सोमरत दूध भर खादि के साथ मिश्रित कर फे डबबो प्रीचे के छिये देना चाहिये । ३ मानवधर्म- शर्‌ के मार्ग से जानेवाके, शत्रु का नाश करनेवाले और कभी असन्माग से जो नहीं जाते, वसे वारों को बुढाकर उनको उत्तम रस पनिक्े छिये दे कर उतवा सामान करता यो है। ३ टिप्पणा- वृद्य(>उत्तम कम करनेताल', अद्भुत सहायता देनेवाला, ( शत्रु का ) नाश करनेवाल्य, ( रोग ) दूर करनेवाला ( पंय )1 नाखत्य 5जे! असक्ष का कभी लाश्नय नदीं करते, सदा राख मर्ग से जोनेवाले, ( नास-त्य ) न का में रहनवाले श्वास भार उच्छपास | वृक्त बाहपरन जिस रस से छानेनके बाद सच तिनके निक ले हें, जिन्‍्द्रोनि आसन फैलाये है (और जो देवों को उनपर बैठने के छिये बुछाते दैं,) रुद्रनघतेनी 5८ भयंकर मर्भ से जातेव,ले, झरवोरों के मार्ग से जाकर दौरता के काये सरनेवाके 1 - ढ़ खि




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