चुनाव | Chonav
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)र्श्
पर प्ञाम के समय वुस्तियाँ और मेज लगा दी जाती है। रेस्टोरेरट वेशक
मामूली सा है, परन्तु वहां की चाय बहुत बढ़िया होती है । भाष एक
बार पी लें तो छुद हो मान जायेगी। कहिये तो वहाँ चलें, प्राध-नपौन
घटा बैठ कर चाय पिये और कुछ गप-दप का मजा उठायें।
प्रनित्ा मे कभी सोचा भी नहीं था कि कुमार साहब इस प्रकार का
सुझाव देंगे । यह जल्दी में कुछ फेगला न कर सदी कि उसे उनके साथ
जाना चाहिए या नहीं | इतदा तो वह जानती थी कि ठाकुर साहब को
पता चल भी जाय तो वह बुरा नहीं मानेंगे । भला, बुरा मातते भी
कसे ? वह भच्छी तरह जानते थे कि झनिता उनकी मुट्ठी मेंहे भोर
उनसे कद कर उसका कोई भविष्य हो ही नहीं सकता ।
प्रतिता को इस तरह सोच में हृवे देख कर कुमार साहब बोले--
भरे, भाप किस सोच में हुव गईं २
प्रतिता चौक कर बोली--'जी कोई सास बात तो नहीं सोच
रही हूँ ।'
कुमार-- शायद श्राप यह सममती हो कि मैं दूसरी पार्टो का
भ्रादमी हूँ भौर भाष दूसरी पार्टी की । भ्रनिता जी, राजनीति में तो
ऐसी बातें चलती रहती हैं । चाहे हमारी पार्टियों का कितना भी विरोध
हो परन्तु यद्द तो भसंभव है कि मैं ठाकुर साहब को चाय पर बुलाऊँ तो
ये इन्कार फर दें, या वह मुझे वुलायें तो मैं इन्कार कर दूं। इस संसार
में सब कुछ चलता है। पार्टी बाजी भी चलती है श्रौर एक दूसरे के
सामाजिक संबंध भी चालू रहते हैं ।?
झनिता सिर हिला कर बोली--“नही शुमार साहब । मेरे छुप रहने
का प्र्थ भाप गलत ममझे; ऐसा विचार तो मेरे मन में कोई नहीं
भ्राया ।'
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