पत्थर की बांसुरी | Patthar Ki Bansuri
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
898 KB
कुल पष्ठ :
104
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पजाबी गीत आदि नाम क्यों दिया जाता । इसका आशय यही है कि भाषागत
विशेषण लगाने से किसी भाषा मे पनपती हुई किसी साहित्य विधा की वाह्तविक
और गहरी पहचान को ढूढा जा सवता है तथा दूसरी भाषाओं म॑ स्थापित किसी
साहित्य विधा से तुलनात्मक रूप में उसे जाना और परखा जा सकता है। यही
कारण है कि गज्जल के साथ हिंदी के रचनाकारों ने हिंदी विशेषण लगाकर उसे
हिन्दी गजल कह्दा ।
हिन्दी गजल का इतिहास भले ही अमीर खुसरो से प्रारम्भ माना जाता है,
कितु बीच म हिंदी गज्ेल की दुष्टि से उसका एक अधवार थुग रहा है और
बाद मे यथपि आधुनिक हिंदी कविता के प्रारम्मिक काल मे ही भारतदु तथा
उनके वाद बहुत से हिंदी कवियों ने गज़लें कही, कितु दुष्पत कुमार के सागे
में धूए' की गज़लें, जिनम से कुछ गंजलें पहले सारिका क 'दुष्य/त स्मति विशेषाक
मे प्रकाशित भी हुई थी, के बाद ही हिंदी कविता के क्षेत्र म हिठी मजल का
वास्तविक उत्थान हुआ। अर्थात यदि कुल मिलाकर देखा जाय तो पिछले बीस
वर्षों मे ही हिटी गजल ने अपना वास्तविक रूप ग्रहण क्या है। यद्यपि यह भी
सच है कि इन गज़लो में से अधिकतर में लप्फाजी ही है, कितु यह भी सत्य है कि
हिंदी गज़ल ने गज्ञल साहित्य को एक नथा तेवर एवं ऐसी नयी नयी दिशाए दी
हैं जो शायद उदू गज़ल में पहल नहीं थी । इतने कम समय में विश्व साहित्य
की किसी भी एक विधा ने शायद ही इतनी तरवकी की होगी जितनी हिंदी
गजल ने की । उद्ू गजल की समद्ध एवं सुदीघ परम्परा के सम्मुख हिंदी पजल
वा अभी बचपन ही है क्'तु उसने फिर भी वे चमत्कार कर दिवाए है जितके
कारण गजल के क्षत्र मे हिंदी गजल का विशेष योगदान माना जा सकता है ।
उसवा उज्ज्वल भविष्य साफ दिखाई दे रहा है
कारक फेयर
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