ब्रह्म - वैवर्त : एक अध्ययन | Brahma Vaivarth Eak Pradyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
402
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सत्यनारायण त्रिपाठी - Satyanarayan Tripathi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ब्रह्मवैवर्त-पाठ समीक्षा/१३
इसके आगे देवी भागवत पचासवें अध्याय में, जिसमें एक सौ श्लोक
राधा और दुर्गा की स्तुति और पूजा-विधि को प्रस्तुत करते हैं, नवम स्कन्ध
समाप्त हो जाता है परन्तु ब्रह्म-वैवर्त राधा ओर दुर्गा के उपाख्यानों का विशेष विस्तार
करते हुए आचार, धर्म और प्रायश्चित्त का भो उपदेश करता है। जैसा कि देवी-
भागवत के ग्यारहवें स्कन्ध में देखा जा सकता है। (प्रथम अध्याय से तृतीय अध्याय
तक) । यद्यपि विषय भले मिलता है किन्तु मूल में कोई समानता नहीं परिलक्षित
होती ।
ब॒ह्न-वैवर्त एवं देवी भागवत ने जो परिवर्तन किये गये हैं वे प्रसंगानुकुल नाम॑
मान्न का है। नीचे कुछ उदाहरण संकलित हैं :--
ब्रह्म बचत
२।७।४७ स्वज्ञानाधिदेवो
२॥७।११६ एवं कृष्णाय तपसा
२।१ ०।८० ध्यानेनकोथुमोक्तैन
२॥१०।७४ मन्नाम-गुणकी तैनम्
२।१०।७३ मन्मन्तोपासकस्तानात्
२॥१०।७२ मद्भक्तदशनेतावत्
२।२७1२७१ कृष्ण पादाम्बुजाचंनमु
२।२८।१ हरेरुत्को तंनम्
२।३०1२१२ पृष्करेभारकर क्षेत्र
प्रभास रास-मण्डले
हरिद्वारे च केदारे
सोमे बदरिफाअमे ।।
२।३२।१० भंगलं क्रष्णससेवनम्
२।३४।१ हरिभक्तिमू ,
२।३४।२ श्री कृष्ण-ग्रुणकी तंन
२।३६।५७ कृष्णानुग्रहाज्च
देवी भागवत
स्वंग्रामाधिदेवो &।५।६ १
एवं देव्याश्व तपसा ५1८।१० ६
कण्वशाखोक्तध्यानेन &॥११।४४
त्वदगुण कीत॑नम ६॥११॥५४
तन्मन्त्रोपासकस्तानात् 51११॥५२
प्रकृतेभ॑क्तसंस्यर्शात् ६॥११॥५१
देवोपादाम्बुजाचेनम् 51३०।१३६
शक्ते रुत्कीतंनम &॥३१॥१
पुष्करे हरिहर क्षेत्र
प्रभासे कास रुस्थले-
हरिद्वारे च केदारे
तथा मातृप्रेईपिच || ६।३४।८७
पंचदेवानुसेवनम ६1३६।१०
देवीभक्तिम ६।३५।१
सर्वाशुभविनाशनमु ६।३८।२
चेशानुग्रहाज्च है।४०।५५
ब्रह्म-वैवर्त का मूल रूप क्या था ? इस प्रश्त पर विचार करते समग्र ब्रह्म-
वैबत के वर्तमान रूप पर ध्यान देते हुए मत्स्य पुराण और नारद-पुराण के उत्त कथनों
को भी ध्यान में रखना होगा जिनमें कि ब्रह्म-वेव्त की सूची अथवा श्लोक संख्या दीं
हुई है ।
मत्स्प-पुराण के तिरपनवें अध्याय में बताया गया है कि :---
रचन्तरत्थ फल्पस्प वृत्तान्तसधिकृत्य च |
सा्वणना नारदाय हृष्णमाहात्म्यमुत्तमस् ।।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...