ब्रह्म - वैवर्त : एक अध्ययन | Brahma Vaivarth Eak Pradyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ब्रह्मवैवर्त-पाठ समीक्षा/१३ इसके आगे देवी भागवत पचासवें अध्याय में, जिसमें एक सौ श्लोक राधा और दुर्गा की स्तुति और पूजा-विधि को प्रस्तुत करते हैं, नवम स्कन्ध समाप्त हो जाता है परन्तु ब्रह्म-वैवर्त राधा ओर दुर्गा के उपाख्यानों का विशेष विस्तार करते हुए आचार, धर्म और प्रायश्चित्त का भो उपदेश करता है। जैसा कि देवी- भागवत के ग्यारहवें स्कन्ध में देखा जा सकता है। (प्रथम अध्याय से तृतीय अध्याय तक) । यद्यपि विषय भले मिलता है किन्तु मूल में कोई समानता नहीं परिलक्षित होती । ब॒ह्न-वैवर्त एवं देवी भागवत ने जो परिवर्तन किये गये हैं वे प्रसंगानुकुल नाम॑ मान्न का है। नीचे कुछ उदाहरण संकलित हैं :-- ब्रह्म बचत २।७।४७ स्वज्ञानाधिदेवो २॥७।११६ एवं कृष्णाय तपसा २।१ ०।८० ध्यानेनकोथुमोक्तैन २॥१०।७४ मन्नाम-गुणकी तैनम्‌ २।१०।७३ मन्मन्तोपासकस्तानात्‌ २॥१०।७२ मद्भक्तदशनेतावत्‌ २।२७1२७१ कृष्ण पादाम्बुजाचंनमु २।२८।१ हरेरुत्को तंनम्‌ २।३०1२१२ पृष्करेभारकर क्षेत्र प्रभास रास-मण्डले हरिद्वारे च केदारे सोमे बदरिफाअमे ।। २।३२।१० भंगलं क्रष्णससेवनम्‌ २।३४।१ हरिभक्तिमू , २।३४।२ श्री कृष्ण-ग्रुणकी तंन २।३६।५७ कृष्णानुग्रहाज्च देवी भागवत स्वंग्रामाधिदेवो &।५।६ १ एवं देव्याश्व तपसा ५1८।१० ६ कण्वशाखोक्तध्यानेन &॥११।४४ त्वदगुण कीत॑नम ६॥११॥५४ तन्मन्त्रोपासकस्तानात्‌ 51११॥५२ प्रकृतेभ॑क्तसंस्यर्शात्‌ ६॥११॥५१ देवोपादाम्बुजाचेनम्‌ 51३०।१३६ शक्ते रुत्कीतंनम &॥३१॥१ पुष्करे हरिहर क्षेत्र प्रभासे कास रुस्थले- हरिद्वारे च केदारे तथा मातृप्रेईपिच || ६।३४।८७ पंचदेवानुसेवनम ६1३६।१० देवीभक्तिम ६।३५।१ सर्वाशुभविनाशनमु ६।३८।२ चेशानुग्रहाज्च है।४०।५५ ब्रह्म-वैवर्त का मूल रूप क्या था ? इस प्रश्त पर विचार करते समग्र ब्रह्म- वैबत के वर्तमान रूप पर ध्यान देते हुए मत्स्य पुराण और नारद-पुराण के उत्त कथनों को भी ध्यान में रखना होगा जिनमें कि ब्रह्म-वेव्त की सूची अथवा श्लोक संख्या दीं हुई है । मत्स्प-पुराण के तिरपनवें अध्याय में बताया गया है कि :--- रचन्तरत्थ फल्पस्प वृत्तान्तसधिकृत्य च | सा्वणना नारदाय हृष्णमाहात्म्यमुत्तमस्‌ ।।




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