श्री कर्पूरप्रकर | Shri Karpoorprakar

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Shri Karpoorprakar by हरिशंकर कालीदास - Harishankar Kalidas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मूल, टीका.अने भाषांतर सादेत,._ (६ ) हये ये काव्यथी मुख्दार कहे छे. ता . ( बसंततिलकाहचम ) | नव्यो गुरुः सुरतरुविंदितामितर्द्ि-..“# *यत्केवछाय कवलारभिषु गौतमी 5भूत्‌ ॥ तापातुरेडमृतरसः किस शैत्यमेव, श नाप्रार्थतो5पि वितरत्यजरामरत्वम ॥ २७॥ नण्यारिति ! गुरुनज्यों नवीनः सरतरः कल्पटक्तः । किभूतः ॥ पिद्िता कृता आमेता अग्रमाणा क्राद्धि श्रीगेनसस्तथा ॥ यस्मात्क- यहार्थेपु पारणार्थेयु तापतेषु केवलाय फेब्लज्ञानाय गौतमः समभूद ॥ एवाबता बांछितादप्यधिक दते गुर: । अतएव नवीनः करपदु! । कल्पहुमों वांछित दचे नाबाछितंदतते न बांछितादपिक॥। हृष्ठातमाह ॥ अप्राधितोडप अयाखचितो5पि अम्नतरसः तापातुरे तापाक्राँते नरे कि शैत्यमेव वितराति करोति। किम्रु अजरामरत _न वितरति ? अपि तु वितरत्येव ॥ २० ॥ ! प्रमाण विनानी ऋषद्धि ऑपनारा गुर नवीन कव्पवृक्ष समान के; कारण के, गौतम ऋषि कवलझनो अप्ननी/ याचना करनारा (त्ता- पसो ) ने फेवलशानने अर्थे थया. दृशांत कदे छे के, प्रार्थना नद्धि फरेलो एवोय पण अमृतरस, तापथी आकुल थयेलाने फक्त शौतल- ताज आये छे, शु अजरामस्पणु नथी आपतो १ ॥ २० ॥ « * ( पृथ्वीदलम, ) मे कुबोधमतयो5मितः कुगुरवो जमाल्यादिवत्‌ , पुनः कचन वजवत्सुगुरवी।मला जन्मतः ॥ $।




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