श्री कर्पूरप्रकर | Shri Karpoorprakar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मूल, टीका.अने भाषांतर सादेत,._ (६ )
हये ये काव्यथी मुख्दार कहे छे.
ता . ( बसंततिलकाहचम ) |
नव्यो गुरुः सुरतरुविंदितामितर्द्ि-..“#
*यत्केवछाय कवलारभिषु गौतमी 5भूत् ॥
तापातुरेडमृतरसः किस शैत्यमेव, श
नाप्रार्थतो5पि वितरत्यजरामरत्वम ॥ २७॥
नण्यारिति ! गुरुनज्यों नवीनः सरतरः कल्पटक्तः । किभूतः ॥
पिद्िता कृता आमेता अग्रमाणा क्राद्धि श्रीगेनसस्तथा ॥ यस्मात्क-
यहार्थेपु पारणार्थेयु तापतेषु केवलाय फेब्लज्ञानाय गौतमः
समभूद ॥ एवाबता बांछितादप्यधिक दते गुर: । अतएव नवीनः
करपदु! । कल्पहुमों वांछित दचे नाबाछितंदतते न बांछितादपिक॥।
हृष्ठातमाह ॥ अप्राधितोडप अयाखचितो5पि अम्नतरसः तापातुरे
तापाक्राँते नरे कि शैत्यमेव वितराति करोति। किम्रु अजरामरत
_न वितरति ? अपि तु वितरत्येव ॥ २० ॥ !
प्रमाण विनानी ऋषद्धि ऑपनारा गुर नवीन कव्पवृक्ष समान
के; कारण के, गौतम ऋषि कवलझनो अप्ननी/ याचना करनारा (त्ता-
पसो ) ने फेवलशानने अर्थे थया. दृशांत कदे छे के, प्रार्थना नद्धि
फरेलो एवोय पण अमृतरस, तापथी आकुल थयेलाने फक्त शौतल-
ताज आये छे, शु अजरामस्पणु नथी आपतो १ ॥ २० ॥
« * ( पृथ्वीदलम, ) मे
कुबोधमतयो5मितः कुगुरवो जमाल्यादिवत् ,
पुनः कचन वजवत्सुगुरवी।मला जन्मतः ॥
$।
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