अथर्वेद का सुबोध भाष्य भाग - 1 | Atharvaved Ka Subodh Bhashya Bhag-1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
451
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तीन काण्डोका परिचय ]
ताख्ु स्वास्तजेरस्था दधामि, श्र यहईम एतु
निऋतिः पराचेः । घ. २१०५
सुधझो पृद्ावस्थामें में घारण छरठा हूं । क्षय रोग ठथा
अन्य सच कष्ट तुझसे दूर घढ जांच |
अपनी रक्षोद्दामोबचातनः । म. धरदाव
अप्नि रा्षप्तोंका नाश करके रोगोंडी दूर करनेवाका है।
( रष्ट:- रोगझूमि )
अनुसूर्यमुदयतां हृथोतो दरिमा च त्ते ।
गोरोदितस्प वर्णन तेन त्वा परिद्ध्मसि ॥
हा, १1२२११
तुर्दारा दृदयविकार तथा छामिला या प्रीछापन सूर्यो-
दयके साथ भानेदाके लारू किरणेंकि छाल वणसे तुझे चारों
झोर घेर कर में दूर करता हूं 1
किलासे च पलितं च निरितों नाशया पृषत्
हे, १1२३४२
इस शरीरसे कुष्ठ व सफेद धरूदे दूर कर ।
अस्थिज्षस्प किलासस्य तनूजस्य च यरवसि ।
दष्या कृतस्य ब्रह्मणा लए्ष्म श्वेतमनोनशम्
हा, १11२३॥४
दोषके कारण व्वचापर उत्पन्न हुए, भस्यिसे ठथा शरीरसे
शश्पद्न हुए, कु्ठका ज्ञो रदचापर चिन्द है 3पडो दम ज्ञानसे
दितश करते हैं ।
शेरमक शेरमभ पुनर्वो यन्तु यातवः पुनहेँतिः
किमीदिनः । यस्य स्थ तमत्त, यो वः प्राहै-
त्तमत्त, सवा मांसान्यत्त 1 भ. २२४।१
दे दघ करनेवाले शंख | तुम्दारे यावता देनेवाके शाख्र,
ठया हे खाऊ छोगों ! तुम जिनके द्वो ठसको खामो, जिन््दोंने
तुम्दें भेजा है उनको खाभो, अपने हो मांप खाभो । ( हम
सुरक्षित रहें 1 )
मिरिमेनां आवेशय कण्थान् जीवितयोपनान् ।
छू. २शधाए
इन ज्ञोवित्तका नाश करनेवाले, पोड। देनेवाले कृ्रियों सो
पद्दाइपर पहुंचाभो ( ये रोगकहृमि इसें कष्ट न दें 1)
क्षेत्रियात्वा निर्कत्या जामिशंसाद हुद्दी
मुख्ामि वरुणस्य पाशात् | क्ष. २1 ७७
झानुवंशिक रोग, कष्ट, संदंधियोंसि कष्ट, दाह तथा
वरुण पागमसे तुझे में छुड्दाता हूं ।
(*३ )
इृष्टमहए्प्रतहमथा कुसरूमतृद्म | अव्गण्ड्न्
स्सर्वास्छलुनान्क्रमीन्चचसा जम्भयामास ॥
ञ्, २३१२
दीखनेवाछे, न दीखनेवाले कृम्रेयोक्रो में मारता हूं।
रेगनेवाले कृम्रियोंकों मै विनर करता हूं । घिस्तरे पर रहने-
वाछे सब कृमियोंडो वचासे में न४ करता हूं ।
निःशालां घृष्णुं घिषणमेऋषायों जिघत्खप्।
सर्वाश्वण्डस्य नप्त्यो नाशयामः सदान्वाः 0
हा. २1१४।१
घरदार नद्दोना, मबमीत होना, एकव चनी निश्चयात्मक
बुद्धिका नाश करना, क्रोधही सव संतानें, दानवदृत्तियाँ
छादिका दम नाश करतठे हैं ।
ग्राहिजंग्राह य्येतदेन तस्या इन्द्राम्नी प्रमुमुक्त-
मेनम् । भ. ३११।१
यदि जझइनेदाले रोयमे ६पछो पकड रखा हो, तो ठप
पोडासे इन्द्र भौर भप्नि हपको छुड्ठावे 1
आ सवा स्वो विशतां घणंः परा शुक्वानि पातय 1
अर, 11२३॥२
तुम्दोर शरीरझ्य निजरण तुम्हें प्राप्त दो कौर श्वेत घब्बे
दूर हों 1
अमुक्त्या यक्ष्मात् दुरितादवद्याद् द्रुहः पाशादू
भ्राद्याश्नोद्मुक््थाः । भ. २१०६
क्षयरोए, पाप, रनिंधकर्म, द्ोहियोंके प!शण और जडूडने-
वाल रोग आदिसे मे तुम्दें छुदाता हूं ।
दुष्या दूषिरसि, द्वेत्या द्वेतिरसि, मेन्या मनिरासि।
हल. २।१११९
दोषको दूर करनेदारा, हपियारका हथियार, दन्चका
चच्र त् ( भास्मा ) है ।
दशवृक्ष मुच्चेम रक्षसो ग्राष्म अधि यैने
अप्नाद् पररंसु। अथा एने वनस्पते जीवानां
सोकमुन्नय 1 ण. २९७१
हे दशवृक्ष | दस राक्षप्ती गढियारोगते इस रोगीको
दूर कर । जो रोग इथकों संधियार्मे पकुद रखता दे। दें
चनस्पति | इसको जीवित छोगोंमिें ऊपर उठा ॥
नमः दीताय तकमने नमो रूराय
5,
75
शाचण
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