पवित्र कुरान | Pavitra Kuran

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ध्स्) अब्दुल्ला या । ईश्वर इच्छा से जव हजरत गर्भ' में थे पिता जन्नत नशीन हुए । जब हजरत पाँच वर्ष के हुए तो माँ भी जन्नत नशीन हुई । आठ वर्ष की श्षवस्था मे उनके एकमात्र सरक्षक बाबा जान भी दुनिया मे नही रहे । चचा अवूतालिव के पश्ु चराते हुए हजरत बड़े हुए । समाज में जो अ्रनैतिकता फैली हुई थी हजरत ने उसके खिलाफ दृढ़ता से आ्रावाज उठानी शुरू की, लेकिन शुरू मे उस आवाज को उनके खानदान वालों तक ने न सुना श्रीर बहुत से तो उनके कट्टर दुश्मन चन बेंठे । खुदा ताला की मेहरवानी से जब हजरत चालीस वर्ष के हुए तो उन्हें जिब्नाइल फरिदते के दर्शन हुए और हजरत कुरान की श्रायतों का ज्ञान प्राप्त होना प्रारम्भ हो गया । हजरत ने परेझाम उन आयतों को सुनाना शुरू कर दिया । फलस्वरूप जहाँ श्रवृूबकर जो इस्लाम के पहले खलीफा कहलाए हजरत श्रली जो मुहम्मद साहब के दामाद भी थे अरब के श्रनेको प्रतिष्ठित व्यक्ति सहित हजरत के अनुयायी हो गए । परन्तु दूसरी ओर बलशाली कुरेश सरदारो ने मृहम्मद साहब का विरोध करना आरम्भ कर दिया । जबानी विरोध नहीं बल्कि हजरत और उनके अनुयायीओ पर तरह तरहके जुल्म ढाए जाने लगे । इस जुल्म से बचने के लिए हजरत की भ्राज्ञा से उनके बहुत से भ्रनुयायी श्रफ्रीका के हवश प्रदेश मे जा वसे । कुरैश सरदारों का श्रौर साहस बढा उन्होने हजरत की हत्या का पड़यत्र किया, परन्तु खुदा की मेहरबानी से हजरत को एक दिन पहले ही इस पडयत्र का पता लग गया फलस्वरूप उन्होने मवका से मदीना के लिए ५३ वर्ष की श्रवस्था मे हिजरत की । | वाद में हजरत के अनुयायिश्रो ने मवबका विजय कर लिया 'स्न्तु वो शेष जीवन मदीना मे ही रहे और ६३ वर्य की श्रायु मे नद्वर ससार से विदा ली ।




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