यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन | Yestetilak Ka Sanskritk Adhyan

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Yestetilak Ka Sanskritk Adhyan by गोकुलचन्द्र जैन - Gokulchandra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१३ श्रोचिय, वाडव, उपाध्याय, मौहूर्तिक, देव भोगी, पुरोद्ित, त्रिवेदी । ब्राह्यणो की सामाजिक मान्यता, क्षत्रिय, क्षत्रियोकी सामाजिक मान्यता, वेश्य, वणिक, श्रेष्ठौ, सार्थवाह, देसी तथा विदेशी व्यापार करने वाले वणिक, राज्यध्रेठो, शूद्र, अन्त्यज, पामर, द्रो को सामाजिक मान्यता, जन्य सामाजिक व्यक्ति--हखायुधजीवि, गोप, त्रैजपाल, गोपाल, गोध, तक्षक, मालाकार, कौलिक, ध्वज, निपाजीव, रजक, दिवाकीति, आस्तरकः, सवाहक, धीवर, धीवर के उपकरण-लगुड, ग, जार, तरी, त्प, तुवरतरग, तरण्ड, वैडिकरा, उडप, चमंकार, नट या शेटूप, चाण्डाल, शवर, किरात, वनेचरः, मातग । परिच्छेद २ ` सोमदेवसूरि भौर जेनाभिमत वण-व्यवस्था ६७-७२ गृहस्थो के दो धर्म--लौकिक और पारछौकिक, लौकिक धर्म लोकाश्रित, पारलौकिक आगमाश्रित, जैन दृष्टि से मान्य विधि, वर्ण-ब्यवस्था और नीतिवाक्यामृत, प्राचीन जैन साहित्य मौर वर्ण-व्यवस्था, सैदान्तिक ग्रन्थो मे वर्णं ओर जाति का अथं, जटासिहनन्दि (७ वी शती) ओर वर्णन्यवस्था, रविपेणाचायं (६७६ ई०} मौर वणं-न्यवस्था, जिनसेन (७८३ ई०}) गौर वर्ण-व्यवस्था, श्रौत-स्मातं मान्यत्तामो का जैनीकरण, सोमदेव के चिन्तनं का निष्कषं, सोमदेव के चिन्तन का जैन दष्टिसे सामजस्य । परिच्छेद २ : आश्वम-व्यवस्था ओर सन्यस्त व्यक्ति ` ७३-८४ आश्रम-व्यवस्था की प्रचलित वैदिक मान्यताएं, यश्चस्तिरुक मे आश्चम- व्यवस्था के उल्लेख, वात्यावस्था भौर विद्याध्ययन, गुर भौर गुरुकुरखो- पासना, विद्याध्ययन समाप्ति पर गोदान ओर गृहास्थाश्रम प्रवेश, वृद्धावस्था गौर सन्यास, अत्पावस्था मे सन्यस्त होने का निपेध, आश्रम- व्यवस्था के अपवाद, जनागम और वबाल-दीक्षा, आश्रम-व्यवस्था की जैन मान्यताएं । परित्रजित व्यक्तयो के अनेक उत्टेख - आजीवक, आजीवक सम्प्रदाय के प्रणेता मखल्मृत्त गोरा, गोदाल की मान्यता, कर्मन्दी, पाणिनी मेँ कर्मन्दी भिक्षुगो के उल्लेख, कर्मन्दी की ऐकान्तिक मोक्ष साधना, कापालिक, प्रबोधचन्द्रोदय मे कापालिको का उल्लेख, कुलाचायं या कौर, कौर सम्प्रदाय की मान्यताएं कुमास्भमण, वित्रशिखण्डि, जटिक, देशयति, देशक, नास्तिक, परिन्नाजक, परित्रार, पारसिर, ब्रह्मचायै, भवि, महाव्रती, महात्रतियो कौ भयकर साधनापं




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