कर्णपर्व | Sachitra Mahabharat Bhasha Tika Karnava Parva
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
547
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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शर ५
'कणप्र ।
प्रथमेषध्यायः ॥ १ ॥
॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीवेदब्यासाय नमः ॥
नारायर्ण नमस्कृत्य नरं चेव नरोत्तमम्र् ।
है।
देवीं सरस्वती चेव ततो जयमुदीरयेत् ॥ १॥
वैश्म्यायत उब्राच-तंतों द्रोणे हते राजन्दुर्योधनमुखा न्रपाः
भूशमुद्धिन्नसनसों द्वोणपुत्नमुपागसन्
ते द्रोणमनुशोचन्तः कश्मलामिहतोजसः
पर्युपासन्त शोकार्तास्ततः शारहतीसुतम्
ते मुहूर्त समाश्चस्य हेतुभिः शाखसंमितेः
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राग्यागमे महीपालछ स्वानि बेश्मानि सेजिरे ॥ ३ ॥
ते वेश्मस्वपि कोरव्य एथ्वीशा नाघुवन्खुखम ।
चिन्तयन्तः क्षय तीर दुःखशोकसमन्विताः ॥ ४ ॥
विशेषतः सूतपुन्नो राजा चैव सुयोधनः |
दुःशासनश्व शक॒निः सोबलुश्व महावकः ॥ ५ ॥
उपितास्ते निशां तां तु दुर्योधननिवेशने.।
चिन्तयन्तः परिक्केशान्पाण्डवानां महात्मनाम् ॥
यत्तदथूते परिक्षेष्ठा कृष्णा चानायिता सभाम् । ,
तत्स्मरन्तो5नुशोचन्तो भृशमुद्दिश्नचेतसः
|
॥ ७॥
बैज्ञम्पायन ने कद्य --ह्े राजा जनमेजय ) जब
मदहाबी दे।णाचाय मारे गये तव अयन्त ब्याकुछ हुए-
हुए राजा दुर्योधन, सब राजाओं को साथ छेकर,अश्व-
(मम के समीप पहुँचे । मोद्द होने के कारण अत्यन्त
५ निश्तेज और द्रोण-बध दे; कारण अयन्त शोकाकुछ
| सब छोग चारों ओर से उन अश्वत्यामा को घेरकर बेठ
/
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गये । शाख्रोक्त बातों से दुःख का वेग कम होने पर
सब राजा ठोस राति के समग्र अपने-अपने टेरे में गये
पहला अध्याय ॥ १ ॥
|. ॥१1३॥उस तीत्र जन-सहार की स्मरण ने वहां मी
उनका पीछा नहीं छोड़ा | वे दु ख और शोक के
कारण ब्याकुछ ये, रात्रि को करबंटें दी बदलते रहे।
+ कर्ण, दु शासन और मद्दारथी शकुनि ये तीनों उस »
रात्रि को दुर्योधन के डरे में ही रहे | पाण्डों के। £
इनसे जो-जो महाक्लेझ पहुँचे थे उनका स्मरण इस ;
समय इन्हें बेतरह भय दिखाने छुगा। झए में जनेक (
1 प्रकार के क्लेश देने और द्वीपदी को सभा में बुक |
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