सूक्तिसुधाकर | Suktisudhakara

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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# श्रीपिष्णुसूनि: € श्ष क+-8--औ]आ-+पआ०आ+क>आा+-आजनव+आ-क « +38-+.६---#>क>क हा कोध्न्यः प्रजापशुपती परिषाति कस पादोदकेन स॑ शिवः खशिरोश्तेन ॥९ १४ कंस्योदरे इश्विर्शिमुसप्रपशः को रक्दीममजनिष्ट च फ नागेः । कऋन्ता निगीये पुनरुह्विरति ल्वदन्पः कश्केन चप परवानिति शवयशई: ॥ १५ स्वां. शीलरूपचरितः परमप्रकृष्ट दर सच्येन सास्विकतया प्वरलेथ शास्त्र: । प्रख्यावदेवपरमात्रिदां. मतेशथ नैबासुरप्रकृतयः प्रमवन्ति बोदूधुम्‌ ॥१ श।पे उल्लझूपितत्रिविधसी मसमातिशायि- सम्भावन तव परिग्ऱिमखमावम्‌ । ज्क्का और मइदियजीका मी पाटन करता हो; तया थे प्रसिद महादेवजी आपडे अतिरिक्त अन्‍य झिसका चरपोदफ ( गंगाजल ) शिरपर धारण करके, शिव ( कस्याणमंत्र ) कहलाते ई !॥ ११॥ मला; आपके सिया और किसके उदरमें शिव, ब्रद्चा आदि यई सारा अ्रपस्त स्थित है, फोन इसकी रहा करता और किसकी नामिसे यइ उत्पन्न शोता ऐ! आपको छोड़कर फौन इसे अपने पैरोंसे मापवर ( प्रत्यकालम ) निगल जाता और पुनः [ संश्िकालमे ) बाइर प्रकट कर देता है; यह प्रपश्ध किसी दूसरैके अधीन है--ऐेसी शका भी कौन फर सकता है ! ॥ १२॥ आमुरी प्रशृतियाले मनुष्य आपके लोकोत्तर शीछ, रूप, चरित्र, परम उत्तम सच्चग्रण और साप्तिक खमावद्ारा, आपको प्रवठ शाख्रों तथा देवसम्बस्घी प्रस्शर्थ ( रहस्य ) को जाननेयाले विख्यात पाराशरादि महर्पियोके रिद्धान्तोंसे मी; ययावत्‌ नहीं जान सकते ॥ १३ ॥ परन्तु आपमें अनन्य मांवना रफनेयाले कुछ भक्तजन आपके ऐ.श्वयंको--जो देश, काल और 4 औआटवरदारस्ोत्रावु इसमे ० १६, १७, १८




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