पुराण-तत्व-प्रकाश भाग - 1 | Puran-tatv-prakash Volume-i

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क आरेयू घड समर | 3] 14:55 | | ७ है 45205 ै, /५॥५५ लय प्रिय पाठक इनन्‍्द ! (18 मेरे पसमपूज्य स्रगंवासी पिता श्रीलांला दीकारामजी ( को सत्यप्रिय भाषण करन की घड़ी रुचि थी, इस कारण उनका प्रेम टू भी ऐसे ही महा पुरुषों के साथ रहता था। में अपने पिता का इक- ५६119 लौता पुत्र हूं.। मेरे पास ऐसा धन का भएडार नहीं, जिससे पाठशाला, हा घमंशाला, अनाथालय इत्यादि बनवा कर संसारमें उनके नाम स्मरणाथ- छोड़ सकूं ।हां मेंने बड़े परिश्रम के साथ इस अन्थको तय्यार किया है, 4710 जिस में सत्य भिय कथन है, जिसले देश के उपकार होने की भी सम्भा- पे« ' बना है उसी को आज मैं, ऑन शा ष् कप हा ० है ७ अपने माननीय पिता के नाम पर सपरपंण करता हूं । अं के हे शक्तिसान्‌ प्रभो! आप दयाभण्डार हा आपकी कृपासे यह पुस्तक लोकप्रिय हो हर जिससे मेरे पिता का नाम चिरस्थ।यी रहे । आओ शम | मे ऋवब्पक सूचचए झट इस पुस्तक का उर्दू अनुवाद उददू जानने वालों के हित्तार्थ शीघू छप हे कर सख्यार हो जायगा। अतएव कोई रहाशय इस पुस्तक और इसके किसी परिर्छेद को उदूँ अनुवाद करने का कष्ट न उठावें | स्थान आय्यसन्दिर | ... ० नवस्वर सन्‌ १९२३ | 'ममनलाल तिलहर,यू०पो ० जि० शाहजहांपुर | शक है बहै्द कर ह । आपका झुभचिन्द्क--- जा




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