मिताक्षरा सटीक | Mitakhsra Sateek (mariyada Paripati Samachar Dharam Sastar)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छ्‌ मिताक्षरा स० प्रायश्चित्तक्कांड का विज्ञापन । जग इकीया उत्ताहा: मे सका: खत हे उनकी भी सुरमत्ि मर्यादा परिपाटी ग्रथ परा करवाने पर आहृठ पाई जाती हे तहा इसने सुखबास लेकर घम्मशास्त्र का अनवाद प्रकाश किया ९-ओर जिस पलक कहाती डे उसी लखनऊ मुल्क अवध में सब रेश्वण सपत्त मेसा ण्क कप न दम ही कप बी. हे के कारखाना ओर एरा सुखबास है ९ झेसे के आ डे: रस को मेतरी से इसको अधूरी प्रतिज्ञा प्ररो कराना निपट मेराही कामहै--तिमसे पाच सात सहस्रसंख्या घन लागति में लगाकर कार्य पुरा करवाया-उक्त मृशी साहब जे। सब देणे से पृथ्य चिख्यात है लिनके परम राज भरक्तिमय शिप्टाचार के प्रतिकार मे साम्राज्य लक्ष्मी पश्रोमती विकुटोरिया राजराजेशख्वरी महाशनी को सदा- ज्ञासे (सी आडे हे ) हम तीन शुभ शब्दे की विशेषण प्रशप्लि लाभ हुऔ-- तिनकों उदारता में सबसे आँधिक विशेषता यह ठहरी कि कर्ता की सतुष्टि तुल्य घनका दान आगग बेठे कर्ता के देकर सेले उत्साह जगाया फ़िर ग्रथ के छापने मे धन जुदा लगाया ग्रेसा हर ण्क से होना बडा दुर्घटडे यह कठौकी लेखनी आप कहती दे--पराठक जने के संवेध कराया जाता हे कि जेसा नक़शा शुद्धा शुद्ध का सब जिल्‍्दो के साथ लगाया जाय उसी से देखि देखि अपनी जिल्दों के शेाधघिले अथातु नकणे के अनुसार प्र्ठ पंक्तिया ठछिक्रे जा जे शब्द वा अत्तर अशुद्ध छ्वो तिनके ऊपर णेसास-दे छेवे का प्रदर्णक चिह्र देकर ठसों पक्ति के सामने (_ त्रापर ) करे हासिये पर शुद्ध अत्तर वा शब्दी के बनाइ लेबे आर अशुद्धका भो न कार्ट तद्रूप बना गहने दअथवः कहीं उसी अक्षर में माचाबिदु लगाने से बनिजाता हे या कही अधिक अक्षर मात्राहरतार से मिटाकर शुद्ध डोजाता छे यद्दवा, कही चटि रहिंगई हे से। ” ऐेसा चिह्न देकर आयु पर लिखि देनेपे इत्यादि जहा जेसा सम्भव डे! से करा--इससझे उपरालू णक सन्देंह निवारण पत्र हे तिसमें (पुनर्नि्मित नाम) चक्र देखे?कषिसमेमास्ड सत्तह विषय भेद जुदे छुदे घरे हें उन पर भी प्रीति करौ-यह परिश्रम केवल दशरोज करने से सब जिल्द शेथीं जायगी फिर पढते समय शुल्धाशुद्ध चक्र अवलोकन को जद्वरत न होगी-द्धापेखानेमें अशुद्ध रहजाने को शज्धि इसी रोतिसे छोतोहेन्शे।थन कमसे केबल अपनाही आगम नहीं किन्तु उतनाबडा पुण्यफल भी प्राप्त हतादे कि छेसा किसी घायल अंग भग आदि प्रुरुष के चिक्कित्सा आदि प्रयत्रों से अंगपरे करदेनेका फलहिीता या प्राचीन मठ मन्दिर धर्मशाना आदि टूटे फूटेकी मग्म्मत्ति कराने में फल द्वोताहे-श्से हों बिकृत पुस्तक 'ग्रादि शेधिक्रेसाग शुद्भु कगदेने से फल छोताहे क्योंकि सच्छास्त हें से वेदमय ब्रह्मका स्वरूप हे इनकाजन्म सुधारने से पस्त्रह्म की 'सन्लष्टि छातोएं ठसरे जे केडे असम्थे उसके पठिकर सुखपातेहे तिनक्रे पुण्य कमिका कुयफल भागशे,घक पुरुषकेा पहुँचता है यह समुभिके दशरोजका परिश्रम मुन्नानी के करना चाहिये-इसी न्याय के अनुसार यन्थकत्तनि नज एक छिल्द सवंधा शाघथि के बर्तावे के पामही अपने रक्‍्खी उसके सिरे पर ( ग्रस्थकर्ता ने अपने किये ममादा के खससान शेाघी ) इतना लेख मोटे अत्तगों से परिच्ञान के निरमित्त से लिखरदिया हेन्ल्कारण अल की हा जा कि य- द्यपि साम्राज्यमुहुद्‌ मुन्शी नवलकिशारने वारम्बार यहीं कहा कि रब आपही लसनऊ मे रहिकर नित्यप्राति दपेहुये प्र [ प्रवरूप ) जे कागद एक सबसे पहिले छाप्किर नमुना पढ़िये देखा जाला न न शुष्यन किया करे | क्योकि जा प्रुम्तक जिसकी कल्पना से वनीडे। उसीझे द्वारा बहुत अच्छी शेायन छाती दे) आ यहीं बानक हेसक्का तो फिर श॒द्घाशुद्ध चक्रों की ज़रूएत बाकी न रहती--परच णेसा बानक नहीं खुला नल कताका ठ्म लगह जाना न छ्ोसका सिर्फ ऋपिजाने बाद पुम्तज् देखनेका आग में पहुंची तब शेथन करके यहाँ लेख गधुद शुद्ध चक्कों सहित लखनऊ भेजागया-कतनि कोष्ठ गिनिक्के गालित्य सत्या का छिमाब देखा कि प्रति4रठ्ठ गक 4क ऋशुद्धि पाई जाती हे अथातु छिसी कि प्र में हो चार इकट्री ओर दही दी चार पृष्ठाम॑ य्द भो अर नहं। है [ यद्यपि चिद्दान पुरुप अच्छी भांत जानते हैं कि प्राय, पुष्तक्ा की प्रात उताग्न बान बेतानऋ 1 दिकाओं रॉ छापे का साचा टेप जमानेयाले विवेचन शक्तिसे विहोन हेतिह इसीसे बहुथा पुस्तक में गा ्ह्य हू घिना नहीं एहता है ) इसों छेतुमे इस ग्चयिता के मससेदा लिखते ममय यह ध्यान तगा रहता के कि उसमें न का स्वछूप ऐसा सनन्‍्द या भ्रामक अगभग न हाथ जिससे पंछे लिपिफार आदि अच्छे न परिसक जा जाः का आर ए




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