अथर्ववेद का सुबोध भाष्य खंड 1 | Atharvaved Ka Subodh Bhashya Kand 1

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Atharvaved Ka Subodh Bhashya Kand 1  by श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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+ 88 ५ _ अथबंबेद के विषयमें -.. स्मरणीय कथन । ऐड (१) अथवेवेदका महरव । सलिद्धिके कम, ( राजकर्म ) राज्यशासन, समाजव्यवस्था भादि ५ भर्यावेदर्का नाम “अह्मबेद, अ्ृतवेद, थरात्मबेद' आादि कम आदिश दोनेंके काएग 200 किक इशिसि (विशेष है, इससे यद आत्मज्ञानका घेद है, यद स्पष्ट है। इसी लिये. दाग पता है। इस विषय देखिये--- कहां है, कि-- हे य्स्य राह्ो जनपदें अथवों शान्दिपारगः । शो ६ बेदस्तपसोडि जातो परहनशानों हृदय संवभूव ॥ कस रि तंदारई व्धेते विस्फ्वस ॥ ; & 1 (गोपथ करा. ३ 1 ९ ) ५ हु (्‌ अधर्षेपरिशिए ४1६ )« , एव भूविएं झा यद्‌ भृग्वद्निससः। चेशपररतः स रसः) सथापन जिस राजके राज्ययें अयववेद्‌ ज[वनेवाला। विद्यद शाति बेडयबोणस्तन्नेयजम्‌ ! यह्लेपज वदमुतम्‌! यदख तड़कष॥ « स्थापनक्षे कर्मपर निरत रहता है, बह राष्ट्र उपद्रवरद्ित द्वोकर | गोपभ मा. ३ । ४) बहता जाता दै। है | बत्वारो वा इसे वेदा क्वेदों यरधवेंद सामवेदो अद्यवेदः 1 (२) अथवे-शाखा हे (गोपथ था, ३११६)... रपलाद, ३ हे ६ मौप, ४ बी ५ कक ७.(१) बढ भेड़ वेद है, अदशञनियोकि हृदय यह लाल रे के 2९ दमन 'िपलाद और पीनक किन अधिद-रदता है। (२) रूग्बंगिरस बढ़ा अह्यज्ञाव है, जो व न है आग, और शनक ये दो अंगिरस हैं बंदी रस भगीत्‌ सत्त है, जो अयर्वा है बढ़ भेषज॒भअंत्रपाठभेद और का मय धर है डा के इतने गोशाश (दवा ] है, जो भेषज है वह अदूत है, जो अस्त है वही समान है। चः की लग कक पद्म है। (३) कक, यझ, साम जौर अक्म येददी चार वेद दें।.” > 2 अयवेदेदकी इस बचनमें * भेषज” अथीत, दोगदोष दूर ४ (३) अथवंके फर्म । डरनेवाली औषधि, ' अस्त” अथीत, खखुकी पु केक. 72 फिट अमारिदि। सघन, तथा जा! बडा शान कहा है। ये तन इन्द अयवेट नम बुक शदे कनेका उपर | चेदर्का मदतत्व स्पष्ट रीति व्यक्त कर रहे हैं । और देखिये-- 6 गम अप हम कि अथर्वेमन्त्रसम्भाष््या सर्वसिद्धिर्भविष्यति ॥ शत बारे की प्राप्ति और उनका संवर्धन । (अयमैर्पारश्िष्ट २५)... ५ पुच्रपशद्ुघनधान्यप्रजाद्वीकरितरंगरवान्दोकिकादिसए- « अधवेद मंत्रदी पैं्ाति होनेसे सब पुरुषार्थ सिद्ध होंगे! ”' व्साघकानि-- पत्र, पशु, घने, धान्य, प्रजा, छो, हाथी, - यद अर्र्वेश्रोा मदर्व है, इस वेदमें ( शॉतिक के ) घोडे, रप, पाछडी जादि ऐेश्वके साधनोंकी हिंद्धि करतेंके शांति स्थापनडे कर्म, ( पौष्टिक फर्म ) पुष्टि बलबाद्धि आदिकी उपाय । क्र तर




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