वाल्मीकि रामायण सार | Valmiki Ramayan Sar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
248
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पृष्ठ) सर्ग;
रामलक्ष्मएयोविंश्वामित्राभ्रमगमनम
श्लोक:--“ तथा वसतिप्ठे श्र्वति 1” इत्यादि ॥१॥
शब्दार्थः--त्र् वति-कहने पर। प्रहष्टवदनः ८ प्रसन्नचित । भ्ाजु-
हावब्युलाया । सलदमणम्-लद्मण के साथ ॥१॥
अन्वयः---वसिष्ठे तथा ब्् वति सत्ति प्रहष्टवदन: स्वयं राजा दशरघः,
सलच्ष्मणम् राम ग्राजुहव [|5॥
सरला्:--पुरोहित वसिष्ठजी के कहने पर. प्रसत्तचित वाले स्वयं
महाराज दशरथ ने लक्ष्मण के साथ रामचन्द्रजी को बुलाया ॥१॥)
श्लोक:-- “कं स्वस्त्मथनम् 1 इत्यादि 1२॥
शब्दा्थ:--स्वस्त्वयनमु-स्वस्ति वाचन | पुरोषसा-पुरोहित के द्वारा ।
मजूलेः-माज़ूलिक मन्त्रों से ॥२॥
अन्वय:--पुरोधसा वसिष्ठेन मात्रा पित्रा दशरथेन च मडुलै: अभि-
भन्त्रितम् स्वस्त्ययन कृतम् ॥२॥
सरल्ाधे:--पुरोहित वसिष्ठजी माता तथा पिता दशरथजी के द्वारा
भाजुलिक मस्त्रों के द्वारा अभिमन्त्रित राम और लक्ष्मण के लिए कल्याण
कामना की गई ॥२॥
श्लोक:--“सपुन्न मृष्न्यु पाप्नाय 1” इत्यादि ॥1३॥
शब्दार्थ:--पूध्ति-मस्तक पर। उपाप्नायमन्सूघधकर । सुप्रीतेन::
प्रसन््तता से । कुशिकपुत्राय-विश्वामिदरजी को ॥३॥
अन्यय:--तदा सः राजा दशरथः पुत्र भूध्नि उपाध्नाय सुप्रीतित अन्तरा-
त्मना कुशिक पुत्राय ददो ॥३॥
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