वाल्मीकि रामायण सार | Valmiki Ramayan Sar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पृष्ठ) सर्ग; रामलक्ष्मएयोविंश्वामित्राभ्रमगमनम श्लोक:--“ तथा वसतिप्ठे श्र्‌वति 1” इत्यादि ॥१॥ शब्दार्थः--त्र्‌ वति-कहने पर। प्रहष्टवदनः ८ प्रसन्नचित । भ्ाजु- हावब्युलाया । सलदमणम्‌-लद्मण के साथ ॥१॥ अन्वयः---वसिष्ठे तथा ब््‌ वति सत्ति प्रहष्टवदन: स्वयं राजा दशरघः, सलच्ष्मणम्‌ राम ग्राजुहव [|5॥ सरला्:--पुरोहित वसिष्ठजी के कहने पर. प्रसत्तचित वाले स्वयं महाराज दशरथ ने लक्ष्मण के साथ रामचन्द्रजी को बुलाया ॥१॥) श्लोक:-- “कं स्वस्त्मथनम्‌ 1 इत्यादि 1२॥ शब्दा्थ:--स्वस्त्वयनमु-स्वस्ति वाचन | पुरोषसा-पुरोहित के द्वारा । मजूलेः-माज़ूलिक मन्त्रों से ॥२॥ अन्वय:--पुरोधसा वसिष्ठेन मात्रा पित्रा दशरथेन च मडुलै: अभि- भन्त्रितम्‌ स्वस्त्ययन कृतम्‌ ॥२॥ सरल्ाधे:--पुरोहित वसिष्ठजी माता तथा पिता दशरथजी के द्वारा भाजुलिक मस्त्रों के द्वारा अभिमन्त्रित राम और लक्ष्मण के लिए कल्याण कामना की गई ॥२॥ श्लोक:--“सपुन्न मृष्न्यु पाप्नाय 1” इत्यादि ॥1३॥ शब्दार्थ:--पूध्ति-मस्तक पर। उपाप्नायमन्सूघधकर । सुप्रीतेन:: प्रसन्‍्तता से । कुशिकपुत्राय-विश्वामिदरजी को ॥३॥ अन्यय:--तदा सः राजा दशरथः पुत्र भूध्नि उपाध्नाय सुप्रीतित अन्तरा- त्मना कुशिक पुत्राय ददो ॥३॥




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