मानसागरीपद्धति | Mansagaripaddhati

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Mansagaripaddhati by राजपण्डित वंशीधर - Raj Pandit Vanshidhar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका । +अईज> पलक मणस्य सबिदानंद निर्विकल्पेकरपिणम्‌ । वेशीधरेण विदुप भूमिकेय विलिरूपते ॥ अप्रत्यक्षाणि शांज्राणि विवोद्स्तत्र केवल । प्रत्यक्ष ज्योतिष शार्॑ साक्षिणों चन्द्रभास्करी ॥ उस जगन्नियन्ता परमेश्वरको अनेक घन्यवाद हैं कि, जिसने अपनी अमुपत्र दंयासे इस जगतूमें विद्यास्त्रको प्रकट करके प्राणियोंक्रों अतुछ सुख आप्त होनेका सरल उपाय . बचाया है, जो भमतुप्य इस संसारमें विद्यासे हीन है, उसको सुस्र पूर्णतया भाप्त नहीं ही सकता, विद्याकी गणनामें बेद, उपवेद, वेदांग, शालत्र, पुराण इत्यादि प्रसिद्ध हैँ, बेदके ४ शिक्षा, करप, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिप, छनन्‍्द ?” थे छः जेग हैं. इनमें ज्योतिपशाल . अत्यक्ष है। क्‍्प्रोंकि, ज्योतिषमें गणित और फलित इन दोनोंका फल प्रत्यक्ष ही आता है; गणितमें ग्रह ग्रहण इत्यादि ओर फलितमें जातक, ताजिक, स्वर, प्रश्न, शकुन आदि । जातकप्रन्धोर्मे अत्यन्त सरल अन्ध ” मानसागरी ” है. संत्कृतमी उसका यथपि यह कठिन नहीं है तथापि साम्ान्यश्रेणीके पंडित कठिनतासे समझ सकते हैँ । उसकी भी कठि* नाईको दूर करनेके हेतु हमने बहुत सरर भापादीका लथा उद्ादरण देशभापामें करके” उपरोक्त जातकप्रन्थकों सर्वोप्कारक वनाया है। अन्य जातक अन्थीकी भपेक्षा / मान* सागरी ” मे बहुतही उत्तम रीतिसे जन्मपत्रसम्मन्धी फल और ग्रणितकी दृशीया है। इसमें पांच अध्याय हैं, प्रथम अध्यायमें मज्जाचरणऊे सोफ, संवन्सरादि पंचांगफलछ तथा चन्द्रराशिसकाझात्‌ प्रहफछ आदि वर्णित दें. द्वितीय अध्यायमें दवादशभावरपष्टी- करण, म्रहफल, हिमही आदि योगफल हूँ. तृतीयअध्यायमें भावगत छम्नेश भादिका फल, इचादि अहफल, तम्वादि हादशभावगत राशिफल, मेपादिसशिगव सूय्योद्मिहफद और पड़वर्ग साधनेकी रीति तथा फछ हैं. चतुर्थअध्यायमें पंचमद्मापुरुपादियोग, सुनफादि सूर्यधन्द्रयोग तथा अनेकानेकयोग फलसद्दित, राजयोग आरिप्ट तथा आरिष्टभंगयोग, हादश« भावफल, नवप्रहोंका पुरुपाकारचक्र तथा अनेकचक्र, फलसंयुक्त रश्मिफल, अष्टकर्वा- फल तथा स्थानादि ग्रहवछ, भावफछ वधा पिंडादि आयुक्रम वर्णित हैँ। पंचमअध्यायाँई विशेत्तति, अष्टीत्तरी, सन्ध्या, योगिनी आदि दशान्वर्दशा विदशादि फलसदित वर्णित है 1 इस श्रकार पांच अध्यायोंसे विभुषित यह परमोत्तम प्रन्ध पंडितोंकी अवश्य अपने पास रखने योग्य है; जातकका कोई भी विपय ऐसा नहीं है जो इस पुस्तकर्म न हो | इसके छापनेके सर आविकार बम्बईमें “ श्रीवेंकटेश्वर ” स्टीम्‌ प्रेसके अध्यक्ष सेठ सेमरन श्रीकृष्णदासजीको मैंने सम्वोपनयूर्वक दिया है । इत्यलमू॥ . * ६ अश्रपड़नन्दु चन्द्र 5च्दे ज्येछे मासि सिते दले । दद्मम्थों झुक्रवारे च सापारम्भः छृतो मया॥ सत्कृपाभाजन-+- राजमान्य श्रीवुधमाषवरामान्मज-राजपंति ; वंशीधर पांडे बरखेइवा ( जिला सीरी ) अवध |




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