न्याय - कुसुमान्जलि | Nyay - Kusumanjali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
279
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१० न्याय-कुसुमाञ्जलौ
स्वर्गापवर्गयोर्मागेंसामनन्ति सनीषिण: ।
यदुपास्तिमसावन्र परमात्मा निरूप्यते ॥ २ ॥
स्वर्गापवर्गधों > स्वर्ग - तुल्ययो: . अपवर्गयो. जीवन्मुक्ति - परस-
मुक्प्रो । ईश्वर - मननभ्र स्वात्म - साक्षात्कार - द्वारा अवृष्ट-हवारा
स्वर्ग तुल्येति--साधारण - जनाना कृते स्व -प्राप्तिरेव परम-
3 आर व क॥ इति तेषासपि स्वर्ग - साहइय - सावनया
मोक्ष-धिषयिणी ग्रवृत्तियथा स्थादिति हेतो, अपवर्गयोः स्वर-
तुल्यस्वाइभिधानम् । जीवस्मुक्तीति--त्रिविध हि. कर्म--आरब्ध
सख्वितं क्रियमाणं चेति। तत्न आत्म-तत्त्व-ज्ञानेन सबश्वित-क्रियमाण-
कमंणोर्विनाइः “एनं ह वाव न तपति किमह साधु नाउकरवम्
किंसहं पापमकरवमित्यादि” श्रुते3, “ज्ञानाग्निः सब-कमोणि भस्मसात्
कुंसतेडजु न” इत्यादि-स्म॒तेश्य । पआररब्ध-कर्मणइच भोगादेव क्षय,
“अवश॑यमेव भोक्तव्यं कृत कर्म शुभाउशुभम्” इत्यायुक्तेः । अतः
य॑स््य॑ जीवात्मनः स्वात्म-साक्षात्कारः सम्वृत्तः इति सिथ्याज्ञानादि
मिंवृत्तम् , किन्तु प्रारब्धनकर्मणो भोग अबवशिष्ठ इति कृत्वा शरीर-
मांस्ते, तद्घोगाय स हि जीबन्मुक्त इत्युच्यते, तदीया च मुक्तिः
जीवन्मुक्तिः । प्रारूब्ध-क्म-भोगानन्तर सज्ञात-तत्त्व-ज्ञानस्यात्मनो
मुक्ति; परम-सुत्तिरित्याहू---परम-मुक्तिरिति ।
” ” संवास्म्साक्षात्कारेति--ननु ईश्वर-मननर्य मोक्ष-दहेतुत्वम अधस्ता-
दृण्येमानेम अनुपपन्मम , “स हि तस्त्वतो ज्ञातः स्वात्म-साक्षा-
त्कारस्योपकरोति” इति सिद्धान्तातू । अतः इंड्यर-मननस्य
स्वात्म-साक्षात्कार-द्वारा मोक्ष-हेतुत्वमुक्तत् । ईहवर मनन स्वात्म-
साक्षात्कारोत्पादन-द्वारा मोक्षोपकारि भवतीति तात्पयंम् । तमेव
[ जिस परमात्मा की उपासना को मनीषियों ने स्वर्गतुल्य जीवन्मुक्ति
तथा परमनमुक्ति का प्रसाधक माना है, उसीका निरूषण प्रक्ृत प्रन्य में
किया जायमी | ९ ॥। ]
'स्वशपिथर्गयों * अर्थात् स्वर्ग के समान अनुकूछ जींवन्मुक्ति तथा परम-मुक्ति
को 1 इंदवर की मंतेन भी अपनी आत्मा के साक्षात्कार द्वारां अथवा
१ यथ्ञपि मुद्रित-पुस्तके “अदृष्ट-द्वारा स्वात्म-साक्षात्कार-द्वारा वा” इत्यंव
बे . तथाएप अर्थानुरोघात् तथा पाठ आदत ।
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