कठोपनिषद | Kathopanishad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
181
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ६ )
उक्तवान् | त्वाम-अनवसरवादिनम् , मृत्यवे-यमराजाय, ददामि-दास्यामि
इति क्रोधावेशेन उक्तवान् 1!४।।
हिं० श०-पितरम् > पिता से। उवाच 5 बोला । कस्मे -क्सिको
अथांत् किस होता या ऋत्विज को । माम् 5 थ्ुके । दास्यसि 55 देगे । द्वितीय
तृतीयम् 5 दुबारा तिवारा।
तम् 5 उसे अर्थात नचिकेता को, त्वाम् 5 ठुमकों मृत्यवे & यमराज को ।
ददानमिच-दूगा।
भावार्थ--क्रोध मे आकर पिताने पुत्र नचिकेताकों कह--तुम्हे यमराज
को दूगा।
विशेष --इस प्रकार कहने पर भी उसे न तो भय हुआ न भ्रम या
क्रोघ, ओर शान्तिपूर्वक फिर बोला '
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नचिकेताका ग्रनुताप
बहुनामेसि प्रथमो बहुनामेसि अध्यस:ः ।
कि स्विद्यमस्य कतंव्यं यन््मयाद्य करिष्यति || ५ ॥
पदच्छेद--बहूनाम्, एमि, प्रथम”, बहूनाम् एमि मध्यमः, किध्वित्,
यमसर्प्र कतव्यम्, यत्, मया, अद्य, करिष्यति |
। अच्चय - बहूनाम् प्रथम: एमि, बहूनाम् मध्यमः एमि, यमस्य किस्वित्
कतंव्यम् यत् मया अद्य करिष्यति |
[शा०]स एवपुक्तः पुत्र एकान्ते परिदेवयाञज्चकार। कथस?
इत्युच्यते--
बहुना शिष्याणाँ पुत्राणा वेमि गच्छामि प्रथमः सन्मख्यया
दिष्याविवृत्येत्यथ । मध्यमाना च बहुना मध्यमों मध्यमयेव वृत्त्येमि ।
नाधमया कदाचिदपि। तमेव विशिष्टग्ुणमपि पुत्र मा मृत्यवे त्वा
ददामीत्यक्तवानु पिता। स किस्विद्यमस्य कतं॑व्य प्रयोजन मया प्रक्तेन
करिष्यति यत्कतेव्यमद्य ? नून॑ प्रयोजनम्र् श्रनपेक्ष्येद क्रोधवशादुक्तवानु
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