स्तोत्र रत्नावली | Istrot Ratnawali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
329
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सिंदष्तोप्रानि श्५
नानारोगादिदुःखाद्ददनपरव ४5 श हर न सदामि ।श्न्तब्यो० 1२|
प्रौढो5३ योवनश्यों विपयविषधरें! पंद्रमिमेमंसन्धो
दष्टो नष्टो विवेकः सुतधनशुवठिस्ादर्सोझ्ये निपण्णाः ।
पैवीचिन्ताविद्वीन मम हृदयमहो मानगर्वा घिहढे ।इन्तत्यो ० ।शे|
वार्कक्ये चेन्द्रियाणां विंगठगतिमतिश्राषिरववादितापः
पाए रोगेथिंयोगैस्वनरसितद॒पु: प्रोढिद्वीनं थे दीनमू ।
मिध्यामोद्यामिडाप अमति मम मनो पूजटे्ष्यानिशूर्ये (क्षम्तमयो ०४
नाना रागादि वुःजाके कारण में खेत ही रहता या उठ समय मी) मुससे
शहरका स्मएण नहीं थना। इसडिये हे शिव ! हे दिप ! हे शहर | हे
महादेष | है शम्भी | अप मेरा आर्य शमा कर) क्षमा फरो॥ २॥
जय मैं युपा अपस्पामे आकर प्रीढ़ हुआ तो पांच विपयरूपी सर्ने मेरे
मर्मश्पानेमि डसा। जिसते मर विवेक नष्ट ह गया। और मैं पन। छी
और सम्तानक सुख मागनेमें छा गया । उछ समय मी आपके चिन्तदनकों
भूछफर भरा द्वदय बढ़े पमष्ड और ऑममानसे भर गया । अतः है
शिए ! ६ शिर ! इ शइर ! है मददिय ! हे ध्वम्मी ! अब मेरा अरराध
क्षमा करो ! क्षम/ कर 1 ॥ ३ ॥ प्ृद्धारस्था्म मी, अर इस्धियोंशी गति
शिपिछ द्वा गयी है धुद्धि मन्द पड़ गयो ह और आषिदेविशाद करों;
कर, रोगों औौर वियोवेत्ति धरोर ज्जोसत हो यया है मेरा मन मिप्या
म्हेइ और धरमिस्णराओंसे दुरंड और दीन धोषर ( अपर ) शीमदादेदजीक़े
सिन्तनसे धूप ही अम रशादै। अठः हे धिप [हे शिए | दे श्र | है
गएदेए ! दे एप्पों | अब सेरा ऋरशप क्षण ब्यो। श्वरा घरों ॥ ४ |
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